मन का चतुर्मास प्यासा है

मन का चतुर्मास प्यासा है, पावस का घट रीत गया है। बेसुध होकर बूँदें थिरकीं हरियाली ने छेड़ा सरगम। सीले सीले दिन अलसाये, जागी सारी रातें पुरनम। अमराई में आ कोयल ने, गाया कोई गीत नया है। पावस का घट……….। लगा दिये अंबर ने कितने, वसुधा पर सावन के मेले। लेकिन यादों की पगडंडी पर…

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