बेसब्री.. सच है हर नदी पर नही बनते पुल, किनारा सदा का,नही सकते मिल, बहते जाएं भले साथ सागर तक, आंखों आंखों में सफर करता बोझिल, बड़े पैमाने हैं कितना जाए सब गिर, समन्दर भी मैला जहां जहां शामिल, बस बहती जा रही जिंदगी यूँही, दुनिया की फिक्र से जाता हूं हिल, अंजाम क्या होगा सच के झूठ से, अब कौन है तैरता ढूंढने को साहिल, खुद से पूछना पुराना दौर था जो वो, क्या इतनी तेजी से धड़कता था दिल, इतना तराशना भी नही,खत्म हो वजूद ही हर काम की जल्दी से क्या होगा हासिल! आशीष चौरसिया ... See more
वर्तमान का अतीत.. देखता हूँ जब पुरानी इमारतें हवेलियां महल बाग बगीचे, सुनता हूँ पुराने गाने, संगीत सुर ताल, पढ़ता हूँ पुरानी किताबें, पीले पड़े पन्ने, आत्मा का समावेश, सुकून मिलता है, शायद उनकी तरह, जो खुद की खुशी से बनते थे वाकई जीते थे, जिंदगी जिंदादिली से, अतीत से तुलना! महसूस होता है ये मोड़ गलत है, जल्दी का लालच, हर काम मे मतलब रास्ता छोटा उम्र भी। #आशीष चौरसिया ... See more
राम के नाम पर -------------- राम के नाम पर कैसा ये द्वंद है।। कैसे हम हिन्दू कैसा लोकतंत्र है।। कभी मंदिर के नाम पर कटघरे मे खड़ा किया।। राम से ही उसकी जन्मस्थली को छला।। राजनीति की पृष्ठभूमि पर राम नाम की बिछाई बिसातें।। अपने ही घर मे राम को मोहरा बना दिया।। राजनीति के दलदल मे राम को घसीट लिया।। शर्म है ऐसे लोकतंत्र पर जहाँ राम को परतंत्र किया।। जिस राम ने परहित के लिए राज भी त्याग दिया।। आज उसी राज के लिए राम की महिमा को भूला दिया।। प्रीति डिमरी ... See more
इश्क की करती हूं दुआ, बंदगी और #इबादत हैरान है खुदा कि आज के इस दौर में #इश्क करता कौन है...? ✍️ Sunita Luthra ... See more
भारतवर्ष के लिए हिंदी भाषा ही सर्वसाधरण की भाषा होने के उपयुक्त है। - शारदाचरण मित्र हिन्दी साहित्य की विशेष धारा से जुड़ने के लिए लॉग ऑन करे.. www.antrashabdshakti.com ... See more
बहिनों से आज राखी बंधाते बहुत कम ----------------------------------------------- इंसानियत के पथ पर दिखाते बहुत कम , सुरक्षा के हित बबूल हैं पुष्प सजाते बहुत कम...... इंसां को आज इंसां है नफरत कर रहा बुझाते हैं दीप घर का जलाते बहुत कम ....... देते हैं मार ठोकर आज इंसां के पेट पर गिरते को दे सहारा उठाते बहुत कम ...... . मानवता ठग रही है आज सरे बाजार में इंसां की आज कीमत लगाते बहुत कम ........ संयम नियम सनातन आज पौरुष है छीजता बहनों से लोग राखी बंधाते बहुत कम...... स्वरचित ---- विमलेश सिंह परिहार "विमल" ... See more
जब हम हिंदी की चर्चा करते हैं तो वह हिंदी संस्कृति का एक प्रतीक होती है। - शांतानंद नाथ हिन्दी साहित्य की विशेष धारा से जुड़ने के लिए लॉग ऑन करे.. www.antrashabdshakti.com ... See more
*कुछ बेवकूफियाँ* हम कभी भी क्रेडिट कार्ड या एटीएम कार्ड इस्तेमाल नहीं करते। थोड़े दिन पहले पतिदेव को न जाने क्या सूझी कि उन्होंने एटीएम कार्ड के लिए आवेदन दे दिया और बैंक से मुझे एटीएम कार्ड लाने के लिए कहा। अपनी और पति की पासबुक या अन्य कोई भी काम हो तो बैंक में मैं ही करवाने जाती हूँ क्योंकि सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं और पति सीढ़ियाँ नहीं चढ़ पाते। पति के नाम से एटीएम कार्ड था लेकिन बैंक में सभी जानते हैं, इसलिए मुझे दे दिया। उन्होंने मुझसे कहा कि इसमें पिन लगाकर 24 घंटे के अंदर अंदर इसी ब्रांच से एक बार एक्टिवेट करना पड़ेगा, फिर किसी भी ब्रांच से इस्तेमाल कर सकते हो। मैंने कहा, "मैडम! प्लीज पिन आप दे दो।" वह बोली कि हम नहीं दे सकते।पिन तो आपको ही डालना पड़ेगा। मैंने कहा कि मैडम ठीक है।फिर मार्केट से ले आती हूँ। मार्केट पास में ही है।यह बता दो कि कौन सी पिन लगानी है। सेफ्टी पिन या ऑयल पिन?" मेरी तरफ देखा और बहुत जोर से हँसीं। क्योंकि शक्ल से तो देखने में मैं पढ़ी-लिखी लग रही थी और बात बेवकूफी वाली कर रही थी। मैंने कहा, "आप हँस क्यों रही हो?" बोलीं, " इसमें आपको पासवर्ड डालना है।" मैंने पति को फोन किया कि तुम बैंक में आ जाओ क्योंकि इसको 24 घंटे के अंदर अंदर इसी शाखा से एक्टिवेट करना है। पतिदेव तो मुझसे भी ज्यादा महान निकले। गार्ड को कार्ड दिया। कोई पासवर्ड उसको बताया और कहा कि भैया तू ही इसको जरा ऑपरेट कर दे। हमें ऑपरेट करना नहीं आता।कोई पूछे कि जब ऑपरेट करना नहीं आता तो आवेदन किया ही क्यों? -राधा गोयल, दिल्ली ... See more