
“डॉ. प्रीति सुराना” इनकी योग्यताएं, पुरस्कार, ख्याति, व्यवहार, लगन, सम्मान आदि सब गौण हैं, इनके व्यक्तित्व के आगे। इतनी कम उम्र में सफलता की अपार श्रृंखला लिए हुए ये कवयित्री, साहित्यकारा, समाज को ईश्वर की अद्भुत देन है। आज सौभाग्य प्राप्त हुआ है कि इनसे कुछ गुफ्तगू कर लूं और कुछ अनकहे, अनछुए पहलू आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर आप सबके साथ साझा कर लूं।
पिंकी– प्रीती जी संक्षिप्त परिचय दे दीजिए , जिससे पाठक आपके बारे में प्राथमिक जानकारी ले सकेंगे, और आपकी उपलब्धियाँ, सम्मान आदि के बारे में जान सकेंगे।
प्रीति जी – हां जी बिल्कुल,..
मेरा नाम -डॉ. प्रीति समकित सुराना
पिता का नाम:- श्री गुलाबचंद जी देशलहरा
माता जा नाम:- श्रीमती लीला देशलहरा
जन्मतिथि – 22 /01 /1976
जन्मस्थान- दुर्ग (छ.ग.)
शिक्षा – बी.कॉम., एम. ए. (समजिक शास्त्र),
डी.ए. टी (एक्यूप्रेशर थेरेपिस्ट) , हिंदी में शोधपत्र लेखन जारी है।
कार्यक्षेत्र – व्यवसाय एवं प्रकाशन ब्लॉग लेखन
सामाजिक क्षेत्र – गौ सेवा, समाज सेवा एवं साहित्य सेवा।
**प्रकाशित किताबें
*मन की बात (कविता संग्रह)
*मेरा मन (कविता संग्रह)
*दृष्टिकोण (आलेख संग्रह)
*कतरा-कतरा मेरा मन (कथा संग्रह)
*काश!कभी सोचा होता,.. (व्यंग्य काव्य संग्रह)
*गद्य लेखन का महत्व (आलेख पुस्तिका)
*विचार क्रांति (हिन्दी पर विशेष विचार संकलन)
*जोगराज जी का वंशवृक्ष (परिवार परिचय)
*कर्म इक्तीसा (धार्मिक पुस्तिका)
*सुनो! (मेरे मन की बात,..)
***गुजराती अनुवाद
काश! कभी सोचा होता,..(गुजराती अनुवादक-रक्षित दवे ‘मौन’)
****30 से अधिक साझा संग्रहों में सहभगिता।
***15 से अधिक किताबों का सम्पादन।
***अन्तरा-शब्दशक्ति प्रकाशन द्वारा 10 माह में 230 से अधिक लघु पुस्तिकाओं व पुस्तकों का संपादन व प्रकाशन।
****’अन्तरा-शब्दशक्ति’ मासिक वेब पत्रिका के 15 अंक संपादित।
****लोकजंग दैनिक सन्धयाकालीन समाचार पत्र में संपादन ‘अंतरा-शब्दशक्ति’ कविताओं के पेज का।
विशिष्ट संपादन
(जेएमडी प्रकाशन की 4 प्रकाशित किताबें)
एवं
*हिंदी सागर त्रैमासिक पत्रिका 2017।
सम्मान
***चौथा सोशल मिडिया मैत्री सम्मलेन 2016 बीकानेर से “प्रतिभा सम्मान-2016” प्राप्त।
***प्रतिमा रक्षा समिति,करनाल द्वारा ‘शान ए भारत’ सम्मान 2016 प्राप्त।
***श्री जैन श्वेताम्बर श्री संघ द्वारा प्रतिभा प्रोत्साहन पुरुस्कार 2016 प्राप्त।
***सहमत संस्था बालाघाट द्वारा ‘काव्य मानस सम्मान’ 2016 प्राप्त।
***रा क सं-मप्र के कवयित्री प्रकोष्ठ द्वारा प्रथम ‘शब्द-शक्ति सम्मान’ संयोजक 2016 हेतु सम्मान प्राप्त।
***जे एम डी प्रकाशन द्वारा ”अमृत सम्मान” 2016 प्राप्त।
***सुरेंद्र पाल जसाला जी द्वारा “पिरामिड भूषण सम्मान” 2016 प्राप्त।
***प्रतिमा रक्षा सम्मान समिति, करनाल द्वारा ‘ग्लोबल डायमंड अवार्ड’ 2016 प्राप्त।
***प्रतिमा रक्षा सम्मान समिति,करनाल द्वारा ‘वुमन एम्पॉवरेमेंट अवार्ड’ 2017 प्राप्त।
***दीनदयाल उपाध्याय स्मृति मंच करनाल द्वारा ‘ग्रेट अचीवर अवार्ड’ 2017 प्राप्त।
*** विश्व हिंदी रचनाकार मंच द्वारा ‘हिंदी सागर सम्मान’ 2017 प्राप्त।
*** साहित्य संगम तिरोड़ी द्वारा ‘साहित्य शशि सम्मान’ 2017 प्राप्त।
***गुफ़्तगू साहित्य संस्था इलाहाबाद से ‘सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान’ 2017 प्राप्त।
***मंजिल ग्रुप साहित्य मंच (मगसम) द्वारा अब तक प्राप्त सम्मान श्रेणियां
रचनाकार सहृदयता सम्मान
शतकवीर सम्मान
रचना प्रतिभा सम्मान
***स्व. विश्वनाथ राय बहुउद्देशीय संस्था द्वारा ‘शब्द सुगंध सम्मान’ 2017।
***प्रतिमा रक्षा सम्मान समिति द्वारा ‘प्राइड ऑफ नेशन सम्मान’ 2017 प्राप्त।
***केजी साहित्य प्रकाशन दिल्ली द्वारा ‘साहित्य सारथी सम्मान 2017 प्राप्त।
***विश्व हिंदी रचनाकार मंच द्वारा ‘श्रेष्ठ कवयित्री सम्मान’ 2017 प्राप्त।
***गहोई एवं वैश्य समाज वारासिवनी द्वारा ‘मैथलीशरण गुप्त स्मृति सम्मान’ 2017 प्राप्त।
***शिव संकल्प साहित्य परिषद नर्मदापुरम, होशंगाबाद द्वारा “काव्य माधुरी सम्मान” 2017 प्राप्त।
***विश्व हिंदी रचनाकार मंच द्वारा “राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान” 2017 प्राप्त।
***सहमत संस्था एवं नगरपालिका परिषद बालाघाट द्वारा “साहित्य गौरव सम्मान-2017” प्राप्त।
***नूतन कला निकेतन द्वारा “साहित्य रत्न-अभिनंदन 2017” प्राप्त।
***आई लीड फाउंडेशन एवं प्रतिमा रक्षा सम्मान समिति द्वारा “इंडिया एक्सीलेंसी प्राइड अवार्ड 2018” प्राप्त।
***विश्व रचनाकार मंच द्वारा ‘श्रेष्ठ शब्दशिल्पी सम्मान’ 2018 प्राप्त।
***जेएमडी प्रकाशन दिल्ली द्वारा नारी सागर सम्मान 2018 प्राप्त।
***वूमंस प्रेस क्लब मप्र द्वारा ‘विशिष्ट महिला सम्मान’ 2018 प्राप्त।
पदभार :
राष्ट्रीय महासचिव
मातृभाषा उन्नयन संस्थान
संस्थापक, संचालक एवं संपादक-
अन्तरा-शब्दशक्ति (वेबसाइट, वेबपत्रिका, फेसबुक एवं व्हाट्सअप पर)
संस्थापक
अन्तरा-शब्दशक्ति प्रकाशन
पिंकी – प्रीती जी, आपका बचपन कैसा बीता?
प्रीति जी– मेरा जन्म दुर्ग(छग) में हुआ लेकिन मेरे मां पापा गाँव में रहते थे, तब वहां अच्छे स्कूल नही थे, इसलिए 2.5 साल की उम्र में दुर्ग के महावीर जैन स्कूल में मेरा दाखिला कराया गया। नाना के परिवार में बचपन बीता। मुझसे छोटे 2 भाई हैं । एक मुझे लगभग 2 साल छोटा जो अब दुर्ग में ही रहता है। एक 9 साल छोटा जो साइंटिस्ट है और बोस्टर्न usa में रहता है।
मेरा बचपन बहुत सामान्य बीता पर एकाकीपन शुरू से ही महसूस करती रही यानि वैसे तो सब कुछ था मेरे पास पर अंदर कहीं बीज था जो है वो अपना नहीं है। जरूरतें सारी पूरी हुई परवरिश में कोई भी कमी नहीं रही। स्कूल बहुत ही अच्छा था 1979 से 1993 केजी 1 से 12 वीं तक 14 साल एक ही स्कूल में फुल दादागिरी, और इमोशनल ड्रामा क्वीन बनकर रही। गर्व है इस बात का कि हमेशा किसी की ख़ुशी की वजह बनने की कोशिश की भले ही बदले में कुछ भी मिला हो।
पिंकी – प्रीती जी आपने लिखना कब से और क्यों शुरू किया?
प्रीति जी – मेरे साहित्यिक क्षेत्र में ही नहीं अपितु जीवन में भी जो प्रेरणापुंज हैं उनके लिए आज शब्दों के जरिये मन के हर कोने को खंगालकर जो भाव निकले उन्हें व्यक्त करने की कोशिश कर रही हूँ।
मन में बहुत से भाव थे, आक्रोश था, बचपन की शरारतें थी, लड़कपन के सपनें थे, यौवन की चाहतें थी पर सबकुछ एक हंसती खेलती लड़ती झगड़ती ‘प्रीति’ के अंदर कई परतों में दबी। सभी पास थे सभी अपने थे, बैर कभी पाला नहीं, पर मन के एक कोना हमेशा अछूता रहा। उसी कोने के खालीपन में गूंजती थी कुछ आवाज़ें जिन्हें शब्द रूप में गढ़ना छुटपन से ही शुरू कर दिया था। कभी शरारत के लिए डांट नहीं खाई स्कूल में और न अधूरे होमवर्क के लिए क्योंकि शुरू से पढाई में अच्छी रही पर कॉपी के पीछे की गंदगी के लिए बहुत डांट खाई। मुझे समझने वाले गिनती के लोग पापा, पूजा और कुछ उँगलियों पर गिने जा सकने वाले अपने। कॉपी के पीछे की गंदगी कब धीरे धीरे पूजा ने इकट्ठी करनी शुरू की पता नहीं। पर इतना पता है हर भाव और हर मनः स्थिति को शब्दों में उकेरना धीरे से डायरी लेखन में बदल गया।
पिंकी– यानी आपको खुद को भी ठीक से याद नहीं होगा कि कबसे शुरू किया, और यह आपका प्राकृतिक गुण है जो अब एक जूनून बन चुका है।
प्रीति जी– हाँ जी, यह आपने बिल्कुल सही कहा । पूजा के इकट्ठे किए गए रफ कापी के पन्नों से जो कुछ भी इकट्ठा हुआ, उसमें 100 कविताएं, लगभग 70 मुक्तक/ शेर/ चतुष्पद थे , जिनसे एक डायरी बनी, जो शादी के बाद एक लाकर में बंद हो गई।
पिंकी– तो फिर तो आपको बहुत ज्यादा समय नहीं हुआ है , इस क्षेत्र में कदम रखे हुए।
प्रीति जी– समकित पति के रूप में एक बेस्ट फ्रेंड साबित हुए। मेरे हर सुख दुख के साथी और साक्षी भी। शादी के बाद पहली कविता उन्हें ही समर्पित की, दूसरी कविता पूजा की सगाई पर लिखी, तीसरी कविता पूजा की सगाई और अपने मातृत्व को जोड़कर लिखी। बस फिर,…….. एक लंबा अंतराल।
उस अंतराल में ढेर सारे सुख-दुख, बेचैनी, तड़प, दर्द के साथ प्रेम समर्पण और विश्वास भी। हर रंग जिया मैंने। शादी के 10 सालों में 3 बच्चे, 5 ऑपरेशन और अनेक बीमारियों ने घेर लिया। 2008 में खुद की गृहस्थी बसाई । 20 feb 2012 में हाईपोग्लुसोमिया के पहले अटैक ने पहले से ही कमजोर शरीर को ही नहीं मेरे मन को भी बेहद क्षतिग्रस्त किया। शरीर का दाहिना हिस्से में लकवे का हल्का असर मुझे बिस्तर पर ले आया। उसी मनोदशा के चलते समकित ने अपनी पुरानी डायरी को ऑरकुट, ब्लॉग और फेसबुक पर शेयर करने के लिए प्रेरित किया। नवंबर 2011 में छोटा प्रशान्त भाई भारत आया तो मेरे लिये लैपटॉप उसी ने 3 साल पहले दिया था और मैंने अलमारी में उठाकर रख दिया था उसपर मेरा ईमेल ब्लॉग फेसबुक सब शुरू कर दिया। वही मैंने अपने सबसे तकलीफ के समय में खुद को व्यस्त रखने के लिए इस्तेमाल किया। समकित की प्रेरणा से लिखना फिर से शुरू किया, 2012 से 2017 में मैंने लेखन से बहुत कुछ पाया।
पिंकी– आपकी अस्वस्थता आपके काम में बाधा बनी या फिर…..
प्रीती जी – देखिए स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझना मेरी मजबूरी थी, लेकिन मैंने उसे कभी बाधा नहीं माना बल्कि हर दिन को जीवन का अंतिम दिन मानकर निरंतर सिर्फ लिखा है। साहित्य मेरी साधना है, यह मुझे नित्य ही करते रहना है। बचपन में यह सिर्फ एक दवा थी, लेकिन आज यह मेरे लिए संजीवनी बूटी है।
पिंकी– अभी तक की यात्रा में किस किस को धन्यवाद देना चाहेंगी जिन्होंने आपका साथ दिया?
प्रीति जी– सही कहा आपने, मेरे अकेले के बस की बात नहीं थी, यहां तक पहुंचना , आभार मेरे पति समकित का जिन्होंने मेरे लेखन को पुनर्जीवित किया, बच्चों, तन्मय, जयति और जैनम का जो हर संभव मदद करते हैं। आभार मेरे परिवार का, मेरे बचपन के मित्र अनुराग और अर्चना का, मेरी सखी और बहन पूजा का, जिसने यादों में मेरे लेखन को संचित और जीवित रखा
अप्रेल 1998 से आज तक हर छोटी मोटी बीमारी में ही नहीं बल्कि हर अच्छे बुरे समय में मुझे मॉरल सपोर्ट घर के बड़े और डॉ ही नहीं बल्कि सच्चे दोस्त और मार्गदर्शक की तरह दिया डा चाची और चाचा (डा भारती सुराना एवं डा अशोक सुराना) ने उनका दिल से आभार, आभार समकित और मेरी पूरी मित्र मंडली का जो समय समय पर प्रेरक बनते हैं। आभार सैफी सर का जिन्होंने मेरी पहली किताब ‘मन की बात’ प्रकाशित की और 01/11/2016 ) से आज तक लोकजंग समाचार पत्र में अंतरा के पेज के संपादन का अवसर दिया का , आभार पुनीत और प्रीति अज्ञात का जिसने मेरी दूसरी किताब ‘मेरा मन’ का संपादन कर प्रकाशित करवाया। आभार मनोज जैन मधुर जी का जिनकी वजह से ही “अंतरा” और “सृजन-शब्दशक्ति” मिलकर इस मुकाम तक पहुंचे। और पिंकी जी यानि आपका, कीर्ति वर्मा जी, अदिति संजय रूसिया भाभी, ब्रजेश शर्मा विफल जी, कैलाश सिंघल भैय्या का आभार जो आज तक अन्तरा व्हारसप समूह के संचालन के साथ मेरी हर गतिविधि में सहयोगी बनते हैं।
अंत में पर सबसे ज्यादा आभार डॉ. अर्पण जैन अविचल का जिन्होंने, वेबसाइट, मैगज़ीन और प्रकाशन शुरू करने में बहुत अहम भूमिका तो निभाई ही साथ ही मेरी हिम्मत भी बने।
पिंकी– प्रीती जी “अंतरा शब्द शक्ति” का सफर कब और कैसे शुरू हुआ और इतने सारे पड़ावों के साथ प्रकाशन तक पहुंचा?
प्रीति जी-1 फरवरी 2016 को 13 महिलाओं के एक व्हाट्सअप समूह से की गई शुरुआत जिसने सृजन फुलवारी से सृजन शब्द से शक्ति का सफर तय करते हुए अन्तरा-शब्दशक्ति का स्वरूप लिया।
अन्तरा शब्दशक्ति एक ऐसा सृजन मंच जो शब्द से शक्ति का विस्तार करके हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार के साथ-साथ स्त्री शक्ति, युवा शक्ति और नवांकुरों के साथ-साथ स्थापित रचनाकारों की विविध विधाओं में निहित रचना प्रतिभाओं को एक मंच पर लाकर वैश्विक स्तर पर लाने हेतु प्रयासरत है। अंतरा-शब्दशक्ति, वेबसाइट, मासिक वेबपत्रिका (ई मैगजीन), समाचार पत्रों में प्रकाशन के माध्यम से तथा सप्ताह का कवि विशेषांक (एक कवि का परिचय रचनाओं सहित हर रविवार सार्वजनिक मंच पर समीक्षा हेतु प्रस्तुत) वेबसाइट, फेसबुक पेज, फेसबुक ग्रुप और व्हाट्सअप ग्रुप के माध्यम से वृहद पर रचनाकारों को जनमानस से जोड़ता है।
अन्तरा शब्दशक्ति प्रकाशन के माध्य से साझा संकलन, स्मारिकाएँ, समीक्षाएं आदि भी प्रकाशित करवाकर प्रतिभाओं को सामने लाने का सतत प्रयास जारी है। साझा संकलनों, लघु पुस्तिकाओं और पुस्तकों का प्रकाशन भी किया जाता है। 25 मार्च 2018 को प्रकाशन पंजीकृत हुआ तब से अब तक 230 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी है। 2019 विश्व पुस्तक मेला में सम्मिलित हुए।
पिंकी– घर परिवार, सामाजिक कार्यक्षेत्र, बिजनेस, और लेखन में कैसे सामंजस्य बिठाती हैं?
प्रीतिजी– लेखन मेरे अंदर इस कदर समाया हुआ है कि मुझे इसके लिए अलग से समय निकालने की जरूरत नहीं पड़ती, चलते फिरते, काम करते , सफर करते हुए, या फिर जब जब भी मैं अस्पताल में भर्ती होती हूं तब भी मैं कुछ न कुछ लिख ही लेती हूं, जितना जीवन के लिए श्वास लेने की जरूरत है उतना ही मेरे लिए लिखना मेरी जरूरत है । मुझे कभी कोई परेशानी नहीं हुई।
पिंकी– आपने देश के हर कोने से कवि, कवयित्रियों, साहित्यकारों को इस मंच पर इकट्ठा किया, प्रोत्साहन दिया, पहचान दी, सोई हुई प्रतिभा को जगाया, आगे बढ़ने की प्रेरणा दी, हम सब आपके आभारी रहेंगे।
प्रीति जी– मेरा मानना है कि हर इंसान में कुछ न कुछ प्रतिभा होती है पर जिसे परिस्थिति वश वो खुद भी नहीं समझ पाता, यदि दिन के चौबीस घंटों में से दो दो मिनिट भी खुद के लिए चुरा लिए जाएं तो आप दिन भर में अडतालीस मिनिट बचा लेते हैं अपनी रुचि के कार्यों के लिए , बस शुरुआत में इतनी ही जरुरत है बाकी तो उनकी प्रतिभा से ही वे आगे बढ़ते हैं, मैं तो सिर्फ सेतु का कार्य करती हूं।
पिंकी– आपकी रचनाओं में इतना दर्द है, पराकाष्ठा है, कैसे लिख देती हैं आप ??
प्रीति जी– सुना होगा ये गीत,… दुनिया मे कितना गम है, मेरा गम फिर भी कम है,.. मैं सिर्फ खयड का दर्द नहीं बल्कि औरों की जगह रखकर उनका दर्द भी महसूस करने की कोशिश करती हूँ, खुशियां बांट लेती हूं और दर्द लिख देती हूं 😊
पिंकी– लेखन के अलावा कोई और शौक हैं क्या आपके?
प्रीति जी– संगीत सुनना और खूब बातें करना पर घर पर ही। बीमारियों से पहले मैंने पेंसिल आर्ट और चारकोल से लेकर आयल पेंटिंग तक 15 तरह की अलग-अलग दर्जनों पेंटिंग्स बनाई है, क्रोशिया और बंधेज के रुमाल चादरों आदि की गिनती ही नहीं, हाइपोग्लुसोमिया के अटैक के साथ हस्तशिल्प का शौक जाता रहा 😔
पिंकी– आपके तीनों बच्चों में से किसी को लिखने का शौक है क्या?
प्रीति जी– बाद बेटा तन्मय डायरी लिखता है, छोटा जैनम गद्य में काफी अच्छा है। (पर दोनों अंग्रेजी में 😔) समकित और बेटी जयति मेरी हर रचना के पहले श्रोता और पाठक हैं साथ ही यथा समय जयति मेरी कविताओं के लिए स्केच भी बनाती है।
पिंकी– प्रीती जी ईश्वर को किस रूप में मानती हैं आप?
प्रीति जी– मेरे लिए कर्म ही ईश्वर है, विधि विधान, कर्मकांड से दूर कर्मसिद्धान्त पढती,जीती और मानती हूं।
पिंकी– आप अपने अंदर की स्त्री को कहां तक संतुष्ट कर पाई हैं?
प्रीति जी– संतुष्टि स्त्री या पुरुष के लिए अलग काग मापदंड नहीं रखती, मैं केवल ये मानती हूं कि बिना किसी को हानि पहुंचाए यदि स्वहित व लोकहित में कोई कार्य करते हैं तो जो आत्मसंतुष्टि मिलती है वो मुझे लेखन से जुड़े कार्यों ने दी है।
पिंकी-आपके कार्य क्षेत्र को देखकर ऐसा लगता है कि आप सामान्य लोगों से तीन चार गुना ज्यादा काम करती हैं, कैसे हो पाता है?
प्रीति जी– जब आप अपना मानकर काम करते है, अपनों के लिए काम करते है, अपने परिवार और स्वजनों को साथ लेकर काम करते है वो भी अपनी रुचि का तो बड़े से बड़ा दर और बीमारियां भाग जाती है और ऊर्जा कई गुना बढ़ जाती है। वहीं अपनो का एक पल का मनमुटाव ऊर्जा का स्तर कम कर देता है।
पिंकी– आपने बहुत से कार्यक्रम इन 3 सैलून में किये, जिसकी साक्षी मैं भी रही, आगामी कार्यक्रम की कोई योजना जिसके बारे में आप बताना चाहेंगी?
प्रीति जी– 18-19 मई 2019 को एक आयोजन हमारे ग्राम वारासिवनी में 2 दिवसीय साहित्य सम्मेलन करने जा रहे हैं जिसमे लगभग 45 किताबों का विमोचन होगा और अन्तरा शब्दशक्ति परिवार की इच्छा भी पूरी होगी हमारा छोटा सा गाँव देखने की।
पिंकी– आपकी सबसे प्रिय कविता कौन सी है? जिसे आप अक्सर ही गुनगुनाने लगती हैं?
प्रीति जी– भीगे भीगे नयन ये सुखा लूं जरा,
बहुत रो लिए मुस्कुरा लूं जरा,
दूर कर जो सके जिंदगी की थकन,
गीत ऐसा कोई गुनगुना लूं जरा,…!
पिंकी– इस साक्षात्कार के द्वारा आप पाठकों को कुछ संदेश दें।
प्रीती जी– सिर्फ इतना कि थकना या हारना हमारी कोशिशों में कमी का परिणाम है, आत्मविश्वास से बड़ा साथी दुनिया मे कोई नहीं बस स्वाभिमान अभिमान में न बदले तो आत्मबल से हर मुश्किल दौर कट जाता है।
सहारा मत ढूंढो, सहारे छूट जाएंगे।
हौसला रखो, हौसले काम आएंगे।
पिंकी– प्रीती जी, आपने अपना कीमती समय निकाल कर हमें कृतार्थ किया है, बहुत बहुत धन्यवाद देती हूं।
प्रीति जी– पिंकी जी में भी आपकी दिल से आभारी हूँ कि आपने मुझे इस साक्षात्कार के योग्य समझा। * प्रिय पाठकों, आशा है आपको यह साक्षात्कार पसंद आया होगा। प्रीति जी आपके उज्जवल भविष्य और अच्छे स्वास्थ्य के लिए मंगलकामनाएं प्रेषित करते हुए विदा लेती हूं ।
शुभाकांक्षी- पिंकी परुथी “अनामिका”