अन्तरा शब्दशक्ति और आपका अनुभव
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प्रीति अन्तरा शब्दशक्ति है या अन्तरा शब्दशक्ति प्रीति है कहना बहुत कठिन है। ये दोनों इस तरह एक-दूसरे में समाए हुए हैं कि इनके लिए “एक प्राण एक शरीर” कहना मुझे अधिक उपयुक्त लगता हैं।यह एक ऐसे परिवार का रूप ले चुका है जहाँ प्रेम, स्नेह, विश्वास, त्योहार….सभी रंग इस मंच रूपी परिवार में अठखेलियाँ करते दिखेंगे।
अंतरा शब्दशक्ति से जुड़ना एक संयोग रहा मेरे लिए।जुड़ कर इसका अभिन्न अंग बनना उससे भी अधिक दुर्लभ संयोग बना मेरे लिए।
याद नहीं आता इससे जुड़े कितने दिन हुए!
लगता है बरसों की पहचान है इससे।
पर वास्तविकता इससे नितांत अलग है।
दो वर्षों के इतने अल्प समय में इसने अपने पंखों को फैला कर जो उड़ान भरी वह देखते-देखते अपनी कर्मठता, अपने कौशल, अपने नित कुछ न कुछ नया करने की धुन के चलते विभिन्न आयामों के साथ आभासी मंच की एक सशक्त पहचान बन कर शान से, स्वाभिमान से अपनी अमिट गाथा रचने-लिखने में लीन है।
जो इससे जुड़े उनकी सृजनात्मकता के रंगों से अंतरा शब्दशक्ति का मंच नित सृजन के फागुनी रंगों से रंगा जैसे रोज होली खेलता है।
ऐसा नहीं कि यहाँ कोई नियम नहीं। इस परिवार के सभी सदस्यों को पता है कि किस दिन साहित्य की किस विधा में अपने सृजन के रंगों को बिखेरना है। यहाँ सृजन है तो समीक्षा भी, शिक्षण भी है साथ ही प्यार के साथ मिठास लिए उड़ती हुई डाँट की हल्की सी फुहारें भी। हर विधा साहित्य की उतरती है इसके मंच पर, जो सृजनकर्ताओं को निरंतर अभ्यास से निखारती हुई एक पहचान देती हुई चल रही है। एक से शुरू हुई यह यात्रा आज एक परिवार का रूप ले चुकी है और फ़ेसबुक, वहाट्सएप, वेब मैगज़ीन, वेबसाइट के आयामों से आगे प्रकाशन के संसार में भी क़दम रख चुकी है जिसमें मंच से जुड़े साझा प्रकाशनों से लेकर व्यक्तिगत पुस्तकों के प्रकाशन और उनके विमोचन का प्रावधान भी है। ई बुक, नियमित गतिविधियों के बीच में से विभिन्न अवसरों पर हुई लेखन गतिविधियों के बीच से बने साझा संग्रहों के सरप्राइज उपहार भी इसके सदस्यों को प्रसन्नता के रंगों से सराबोर करते रहते हैं।अगर यह कहा जाए कि अन्तरा शब्दशक्ति स्नेह, प्रेम, विश्वास और आत्मीयता का भंडार है तो गलत नहीं होगा। एक बार जो यहाँ जुड़ा तो रिश्तों की डोर में बंध जाता है। जो टूटता है तो अपने ही भ्रम,गलतफहमियों, अहं और गलत व्यवहार के चलते ही टूटता है।
वरिष्ठों का सहयोग, नयों का उत्साहवर्धन इस मंच की ऐसी विशेषता है जो हिंदी को श्री संपन्न तो कर ही रहा है, समर्पित भाव से हिंदी की विकास यात्रा में अपना श्रेष्ठ देता हुआ बढ़ रहा है।
डा० प्रीति सुराना के देखे सपनों से आरंभ हुई ये यात्रा परेशानियों के कठिन दौर से भी जब-तब दो-चार होती है पर इन सपनों को पूरा करने के लिए जो समर्पण है वो रुकना जानता ही नहीं, तभी तो उनके साथ समकित सुराना, उनके तीनों बच्चे, अन्तरा शब्दशक्ति परिवार के सभी सदस्य, जिन्हें मुझे अन्तरा सारथी कहना अधिक अच्छा लगता है, ऐसे अन्तरा सारथियों के अतुलनीय प्रयासों और निस्वार्थ समर्पण से काल के कपाल पर एक नया इतिहास रचने को कटिबद्ध है। हिंदी साहित्य में भक्तिकाल को साहित्य का स्वर्णयुग कहा गया है तो अब पुनः अंतरा शब्दशक्ति हिंदी का दूसरा स्वर्णिम युग लिखने की ओर प्रवृत्त है… इसमें किंचित भी संदेह की गुंजाइश नहीं है।
जब एक पुस्तक विमोचन और सम्मान कार्यक्रम करने में हुए कटु अनुभवों के कारण प्रीति सुराना ने स्वयं पुस्तक प्रकाशन के क्षेत्र में उतरने का मन बनाया तो यह भी अन्तरा शब्दशक्ति के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना ही कही जाएगी।
पुस्तक प्रकाशित करवाना कम से कम मुझे तो बहुत कठिन काम लगता था। जब पापा थे तो कभी जाना ही नहीं कि इसमें कितना श्रम लगता है, कितनी बार प्रूफ पढ़ना पड़ता है, प्रकाशक और प्रेस के कितने चक्कर काटने पड़ते हैं और तब भी मनचाहे समय पर पुस्तक नहीं मिल पाती थी। कई बार प्रूफ देखने-पढ़ने के बाद भी अशुद्धियाँ दिखाई दे जाती थी। पापा के उस पार के संसार में चले जाने के बाद जब मैंने उनकी एक पुस्तक प्रेस में दी तो कितने चक्कर काटने के बाद पुस्तक हाथ में आई.. यह मैं ही जानती हूँ।
प्रीति ने अन्तरा शब्दशक्ति प्रकाशन में लेखक को पुस्तक की पूरी सामग्री टाइप कर या करवा कर वर्ड फाइल में ईमेल से भेज देने की सुविधा प्रदान की। उसके बाद लेखक निश्चिंत। पुस्तक निश्चित समय पर उसके हाथों में पहुँचती है। यह कितनी बड़ी सुविधा और निश्चिंतता है एक लेखक के लिए…. यह प्रकाशकों, प्रेस वालों के यहाँ चक्कर काट कर थक चुका लेखक ही समझ सकता है।
अन्तरा शब्दशक्ति प्रकाशन की स्वामिनी प्रीति सुराना ने तो प्रकाशक और लेखक के आपसी रिश्ते को आत्मीयता प्रदान कर विश्वसनीयता को भी प्रगाढ़ किया। यहाँ मैं अपना अनुभव देना चाहूँगी जो मेरे हृदय के बहुत समीप है। मैं अपने बेटे के जन्मदिन पर उसके लिए समय-समय पर लिखी अपनी कविताओं को पुस्तक रूप में प्रकाशित कर उसे उपहार देना चाहती थी। पुस्तक का पूरा मैटर प्रीति को भेज कर अपनी इच्छा बताई। उन्होंने कहा… दी! आप निश्चिंत रहें।जन्मदिन पर आप अपनी पुस्तक बेटे को उपहार में दे रहीं हैं। मुझे एक दिन पूर्व पुस्तक मिल गई थी और प्रीति ने स्वयं फोन करके यह जाना कि पुस्तक मुझ तक समय पर पहुँची या नहीं। तो यह है वादा करके उसे पूरा कर अपने लेखक को विश्वास प्रदान करने की प्रीति और अन्तरा प्रकाशन की उत्तम नीति.. जो उसके लेखक को उससे एक बार जुड़ जाने पर टूटने का, दूर जाने का अवसर नहीं देती।
अन्तरा शब्दशक्ति समूह से जुड़ने से लेकर अन्तरा शब्दशक्ति प्रकाशन से जुड़ने तक, मैं प्रकाशन आरंभ होने के दिन से ही अपनी पुस्तकों के प्रकाशन से इससे जुड़ी हूँ, के अपने अनुभवों पर दृष्टि डालती हूँ तो एक सुखद गर्व मिश्रित अनुभूति से भर उठती हूँ।इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। जो अनुभव किया वही बताने का प्रयास मैंने यहाँ किया है।
प्रीति सुराना के सपनों का अन्तरा शब्दशक्ति समूह और प्रकाशन अपनी नित नयी योजनाओं के द्वारा अपने पंख खोल-फैला कर उड़ान भर रहा है। यह तो एक आंदोलन के रूप में काम करते हुए ऊँचे लक्ष्य की ओर अग्रसर है। वो दिन अब अधिक दूर नहीं है जब यह एक अद्वितीय इतिहास रचेगा।
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डा० भारती वर्मा बौड़ाई
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