अंतरा शब्द शक्ति और मेरा अनुभव
लेखन क्षमता तो स्कूल के समय से रही, पर शायद मैं इससे अनभिज्ञ थी। लेखन के प्रति रुझान भी था पर इसे मैं शायद अपने खाली समय को व्यतीत करने का एक जरिया मानती थीऔर यूं ही डायरी में मन के कुछ खट्टे मीठे, कड़वे और कुछ सुख दुख से भरे अपने जीवन में घटित उन पलों को अपनी डायरी से शेयर करती थी।
परन्तु उस समय तक ये नहीं सोचा था कि मेरा लेखन मेरी प्रशस्ति का मार्ग भी हो सकता है।
जो कि मेरी अनदेखी मंजिल पर भी ले जा सकता है, जिसका न तो ज्ञान था और न भान कि कहां है वो मेरी मंजिल और रास्ता तो दिखाई नहीं दिया कभी। न ही कभी उन रास्तों को ढूंढने और मंजिल पाने की ख्वाहिश की, बस यूँ ही अपने मन के उद्गारों को नियमित तो नहीं पर कभी ही, पर डायरी लेखन को अपना दोस्त बना चुकी थी अपने फुर्सत के पलों में।
पढ़ाई के दौरान ही उस समय के साथ अपनी छोटी सी उम्र मात्र (18)वर्ष में शादी और नाजुक से कंधों पर संयुक्त परिवार में रहते गृहस्थी की जिम्मेदारी फिर बच्चे उनका पालन पोषण।
इन सब में उलझकर कलम को दरकिनार कर दिया और डायरी लेखन भी स्वतः बंद हो गया।
पर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होने पर फिर समय काटने के लिए उन पुराने पलों को याद कर पुनः लिखने लगी और मेरे अभी के और पुराने पलों को संवारा अंतरा ने और उन्हीं पलों के लेखन ने मुझे अंतरा शब्द शक्ति से मिलवाया या यूं कहें कि अंतरा ने ही वह रास्ता दिखाया जो अभी तक अदृश्य था परन्तु यहीं कहीं मेरे बहुत करीब।
अंतरा मंच पाकर मुझे वो मुकाम मिला जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी और उस मुकाम पर लाने का श्रेय मेरे वरिष्ठ और गुणी मेरे उन रचनाकार मित्रों को जिन्होंने समय-समय पर मेरी रचनाओं की समीक्षा की और गुरू बनकर मेरी लेखन क्षमता को गति प्रदान करने में मेरी मदद की और हमेशा प्रोत्साहित कर और आगे बढ़ने को प्रेरित किया, मेरी त्रुटियों से अवगत कराया जिससे मुझे और अच्छा लिखने की प्रेरणा मिली और वे मेरे मार्गदर्शक बने।
आज मैं जहाँ हूँ सिर्फ अंतरा शब्द शक्ति की वजह से – – – क्योंकि एक अंतरा ही ऐसा ग्रुप है जिसमें जितने भी सदस्य और माननीय साहित्यकार, संचालक मंडल और पदाधिकारी हैं, वे अपनी वाकपटुता से और व्यवहार, वाणी से अपना बना लेते हैं और उनका सद्वयवहार।हम सबको एकजुट बनाकर रखता है – कभी कोई वाद विवाद और अलगाव की स्थिति नहीं होती है।
सब एक ही का साथ देकर पटल पर समरसता बनाए रखते हैं और एक-दूसरे की रचनाओं की समीक्षा कर उनको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं
दो लाइन अंतरा के लिए – – –
अंतरा से जुड़कर ही मैंने
पाए पंख और परवाज
हौसला और साथी मिले
उड़ चली मैं आकाश।
किरण मोर कटनी म.प्र.