अन्तरा शब्दशक्ति और मेरा अनुभव
“हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा।”
ये लाइनें अंतरा शब्द शक्ति के ऊपर पूरी तरह चरितार्थ होती है। उसने साहित्यिक क्षेत्र में अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज की है। उसका योगदान सराहनीय है। हर व्यक्ति में कुछ न कुछ प्रतिभा होती है। पर उस प्रतिभा को सामने लाना, उसे निखारना मुश्किल होता है खास तौर पर आधी आबादी को ये सपोर्ट परिवार से भी नही मिल पाता। और इसी लिए सपने अधूरे ही रह जाते है। “अंतरा शब्द शक्ति” ने हमें जो प्लेटफार्म दिया उसने न सिर्फ हमें उत्साह और ऊर्जा दी बल्कि साहित्य जगत में हमारी पहचान कराई। जिस तरह से हमारी लेखनी पुस्तक मेला, कलकत्ता संग्रहालय से यात्रा करते ईबुक तक का सफर किया वो सब अंतरा शब्द शक्ति की ही देन है।
मैं प्रीति जी और अंतरा शब्द शक्ति परिवार को हृदय से बधाई और शुभकामनाएँ देती हूँ।
डॉ हेमा पाण्डे
मुम्बई