अन्तरा शब्द शक्ति और आपका अनुभव
लिखनें का शौक स्कूल के जमानें से था। पत्र पत्रिकाओं में छपता भी था। पर विवाह के बाद परिस्थतियां एकदम बदल गई। साऊथ का रिमोट एरिया, जहां बात करने के लिये भी लोग नहीं थे।बच्चे हुये और अपने जैसे लोग मिलते गये। वक्त दौडनें लगा। बच्चे जब बड़े हुये तो बच्चों की पढाई के लिये मुझे हैदराबाद में शिफ्ट होना पडा़। वहीं कुछ साहित्यिक ग्रुप से जुडना हुआ।बडी़ बेटी मेरे लिखे पन्ने सम्हाल कर रख लेती थी और लिखने को प्रेरित भी करती थी।
इसी समय अन्तरा शब्द शक्ति से जुड़ना हुआ। विषय आधारित लेखन शुरू हुआ। शुरू-शुरू में कुछ ढंग से नहीं लिखा जाता था पर प्रीती जी के प्रोत्साहन से लेखन यात्रा सुचारू रूप से चलने लगी।
आज मैं गद्य और पद्य दोनों में लिखती हूं और शुक्रगुजार हूं अन्तरा शब्द शक्ति की और उन सब साथियों की जिन्होंने मेरे लिये नये दरवाजे खोले। जिसकी वजह से आज मुझे एक पहचान मिली है । बहुत बहुत धन्यवाद अन्तरा-शब्द शक्ति…🙏🙏
नमिता दुबे