अंतरा शब्दशक्ति और मेरा अनुभव
अन्तरा शब्द शक्ति एक ऐसा मंच है जो हिंदी साहित्य के लिये संजीवनी का कार्य कर रही है । मंच की संस्थापिका डॉ प्रीति सुराना जी ने इसकी स्थापना १फरवरी२०१६ को साहित्यिक सेवा हेतु किया था। सह संस्थापक आ समकित सुराना जी एवं सहयोगी अविचल जी , सिंघल जी , विफल जी , कीर्ति वर्मा जी, पिंकी परुथी’अनामिका’जी ,अदिति रूसिया जी व शिखा जैन जी हैं। इस मंच से १७५४४ सदस्य जुड़े हैं। इतना बड़ा मंच है अंतरा शब्दशक्ति परिवार का फिर भी डॉ प्रीति सुराना जी सभी को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करती हैं और सभी सहयोगी भी कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हैं।
डॉ प्रीति सुराना दी स्वयं साहित्य सेवी और हिंदी सेवी हैं जो वारासिवनी(म प्र) में रह कर पूरे देश में हिंदी साहित्य सेवा की अलख जग रहीं है । इनकी स्वयं की १० से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा लगभग २३० पुस्तकों का संपादन व प्रकाशन किया है प्रीति दी ने।साथ ही साथ अपराधों की दुनिया व लोकजंग दैनिक सांध्य समाचारपत्र के ‘अंतरा शब्दशक्ति ‘ कविता पेज का संपादन भी कर रही हैं । ऐसे व्यक्तित्व के सम्मान और पुरुस्कार लिखने में लेखनी अक्षम है कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा । अंतरा शब्दशक्ति सोशल मीडिया और प्रिंटमीडिया दोनों तरह से नवांकुरों को साहित्यिक मंच देता आ रहा है।
मैं सर्वप्रथम १३नवम्बर२०१७ को अंतरा शब्दशक्ति से फेसबुक ग्रुप से जुड़ा । पहले मैं इस मंच पर अपनी रचना डर-डर कर पोस्ट करता था, सोचता था कोई त्रुटि होगी तो लोग क्या कहेंगे? परंतु इस मंच के महान साहित्यिक हस्तियों से प्रोत्साहन मिला जिसके कारण मैं पहले से बेहतर अनुभव करता हूँ और मुझमें आत्म विश्वास जगा। ऐसा डर संभवतः सभी नव रचनाकारों के साथ होता होगा जो प्रोत्साहन व उचित मार्गदर्शन से ही दूर हो सकता है। अनुभवहीन रचनाकारों को परिपक्वता की और ऐसी ही मंच ले जा सकती है। इस मंच को यहाँ तक पहुंचाने में डा प्रीति सुराना जी तथा कुछ सक्रिय सदस्यों की महती भूमिका रही है ।
मैं बहुतदिनों से थोड़ा बहुत लिखता जरूर था परन्तु उसका संकलन , रख-रखाव, मूल्याङ्कन,सक्रियता नही हो पाता था ।अब अंतरा शब्दशक्ति मंच के जरिये ये सब संभव है । अंतरा शब्दशक्ति मंच में सभी सदस्य अपने व्यस्तम दिनचर्या के बीच से निकलकर रचनाओं को पढ़ते हैं ,आज के दौर में ये छोटी बात नही है। इस मंच को सक्रिय रखने के लिए प्रत्येक दिन के रचना हेतु अलग- अलग विषय होता है ।जिससे हम सबमें चैतन्यता व सक्रियता आती है। ये व्यवस्था नवांकुरों की लिखने में सहायता करती है । विश्लेषण करके इस मंच को रचनाकारों की पाठशाला भी कहा जा सकता है।
मेरी एक रचना ‘भीड़’ अपराधों की दुनिया व कई रचनाएं ‘लोकजंग’ में प्रकाशित हो चुकीं हैं , जिससे मुझे अपार ख़ुशी व प्रोत्साहन मिला है। मैं हृदय तल से ऐसे मंच को नमन व डॉ प्रीति सुराना दी स्नेहाभार प्रकट करता हूँ ।
पारसनाथ जायसवाल ‘सरल’
मनकापुर ,गोण्डा (उ0 प्र0)