“अन्तरा शब्दशक्ति और मैं”
अन्तरा-शब्द शक्ति,,,, पूर्ण मनोयोग से बनाया गया सुन्दर परिवार,, जिसमें जो जिस प्रकृति का है , एक दूसरे को स्वीकार्य है। किसी भी परिवार या समूह में भाँति भाँति के स्वभाव वाले होते हैं, इसे में समूह इसलिए नहीं कह रही हूँ क्योंकि यह सच में एक परिवार ही है। जिस प्रकार किसी भी परिवार में एक मुखिया होता है और वह सबका ध्यान रखता है उसी तरह से यहाँ की मुखिया प्रीति सुराना जी हैं जो उम्र में तो बहुतों से छोटी हैं किन्तु अपने कर्मों और व्यवहार में तथा उत्तरदायित्वों को निभाने में हम सबकी दादी माँ हैं। साहित्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और दीवानगी ही एकमात्र उद्देश्य है जिसने कई महिलाओं के लिए साहित्य का द्वार खोला और परिवार में रहकर भी आज सभी अपनी अपनी पहचान समाज में बना चुकी हैं, बना रही हैं और बनाएँगी।
अन्तरा-शब्द शक्ति,,,, वो गुलदस्ता है जिसमें हर रंग के पुष्प खिलते हैं। वो भी बारह मास,, केवल एक या दो मौसम में नहीं। अपने अपने सृजन की महक से यह गुलदस्ता चौबीस घंटे खिला रहता है,, यहाँ पर तो समय की भी कोई बाध्यता नहीं है कि कब रचना भेजें , हाँ अगला विषय आने के पहले पहले। इस गुलदस्ते पर सदा ही समीक्षाओं की बौछार होती रहती है ,, जिससे यह और निखर कर आता है। यह गुलदस्ता ,,अब गुलदस्ता भी नहीं रहा बल्कि एक पूरी वाटिका बन गया है।
अन्तरा-शब्द शक्ति,,,, होली के भिन्न-भिन्न रंगों के समान है,, जो प्रकृति को नित नवीन रंगों से उल्लासित करता है। यहाँ केवल प्रेम ही प्रेम है,, और प्रेम ही सत्य है ,, और सत्य ही ईश्वर है,, यहाँ कोई भी नकारात्मक ऊर्जा ज्यादा समय तक नहीं रह सकती है ,, क्योंकि वह स्वयं ही असहज होकर इस परिवार को छोड़ देती है। वरिष्ठ सदस्यों का मार्गदर्शन और सहयोग और आशीर्वाद इन रंगों में रचा बसा हुआ है। यही इस परिवार की ताकत है।
अन्तरा-शब्द शक्ति, वह इंद्रधनुष है जो सभी को उल्लासित करता है। इसके सारे सुन्दर सुन्दर रंग आसपास की प्रकृति को भी आनन्दित करते हैं। मिलजुल कर रहने की सीख देते हैं।
यह है अन्तरा-शब्द शक्ति मेरे लिए,, ऊर्जा का स्रोत, शक्ति की उपासना, शब्दों का परिमंडल,, ईश्वर से प्रार्थना है कि वह मुझे इस परिवार का अभिन्न अंग बनाए रखें , मेरी ऊर्जा का सकारात्मक प्रवाह हो और इसके माध्यम से मैं अपने मनोभावों को सबसे साझा करती रहूँ तथा समाज के किसी भी प्रकार के दोष को मुक्त कराने में सफल हो पाऊँ तो वह सब इसी परिवार की ही देन होगी। सभी बड़ों को प्रणाम और छोटों को स्नेह,, प्रीति जी को विशेष अभिवादन और जादू की झप्पी। जय हो, विजय हो , अन्तरा-शब्द शक्ति , तुम अजेय हो।
पिंकी परुथी “अनामिका”