अंतराशब्दशक्ति और मेरा अनुभव
आज मैं जो कुछ भी हूँ, जितनी भी हूँ और अपनी रचनात्मक उपलब्धियों के जितने भी स्वाद मैंने चखे हैं उसके पीछे अंतराशब्दशक्ति मंच का बहुत बडा योगदान रहा है, अंतराशब्दशक्ति से मुझे जीवन में एक सुनहरा मौका मिला अपने अंदर की रचनात्मक भावनाओं को सबके सामने लाने का, अंतरा में रोज एक बिषय मिलता है जिससे मुझे बडी उत्सुकता होती थी उस बिषय पर लिखने की और जब मेरे छोटे से सृजन को बडे-बडे साहित्यकारों द्वारा पढा जाना और फिर उसकी समीक्षा उनके द्वारा की जाना मुझे प्रेरित करता था कुछ और अच्छा एवं नया लिखने के लिए, इसी मंच से कई सुप्रसिद्ध साहित्यकारों से मेरा परिचय हुआ और सबसे ज्यादा खुशी का अनुभव तो तब हुआ जब इसी मंच पर मुझे केंद्रीय रचनाकार के रूप में चुना गया था,
रोजाना सृजन से मेरे लेखन में भी निखार आने लगा और मैं तो अपनी हर छोटी-मोटी उपलब्धियों को सतत् सृजनशीलता का ही ईनाम समझती हूँ,
और आभार व्यक्त करती हूं इस मंच की संचालक आदरणीय डॉ.प्रीति सुराना जी का और इस मंच पर अपना सृजन जारी रखती हूं, किसी शायर ने बहुत खूब लिखा है कि-
सुबह होती है शाम होती है
उम्र यूँ ही तमाम होती है,
अपनी सुबह शाम को यूँ ही बर्बाद करने से अच्छा है कि कुछ बेहतर सृजन कर लूँ ,
मीना विवेक जैन