अन्तराशब्दशक्ति और मेरा अनुभव
अन्तराशब्दशक्ति में सृजन का जो बीज प्रीति सुराना जी ने बोया, वह धीरे-धीरे अंकुरित, पल्लवित होते हुए पुष्पित हो रहा है।
जिससे सुरभित हुई चहु दिशाएं! अनगिनत पाठकों के मन को महका रहीं हैं ।
नित नये आयाम गढ़ते हुए किया गया अथाह परिश्रम फलित हो रहा है।
सबसे बड़ी बात है जो अन्तराशब्दशक्ति की यह है कि कोई भी नवोदित सृजनकार जब जुड़ता है इस समूह से तो निरन्तर प्रेरित होता है। उसे लगता है, अरे मैं भी बढ़िया लिख सकता हूँ।
वास्तव में वह धीरे-धीरे सृजन के क्षेत्र में आगे बढ़ता ही रहता है ।
फिर भले ही वह समूह में किसी कारण बस सक्रिय न भी रह पाये लेकिन मन मे एक बात जरूर रहती है कि सृजन के पंख तो थे लेकिन हौंसला अन्तराशब्दशक्ति से ही बढ़ा है !
औऱ फिर मन ही मन वह यही सोचता है —–
किसी की पंक्तिया है कि
कौन है जो मुझे रोके,
मेरे परवाज को कोताही दे ।
हम परों से नहीं,
हौंसलों से उड़ते है ।।
अंतरा शब्दशक्ति द्वारा आयोजित साहित्यिक कार्यक्रम वास्तव में अपनेपन, सरलता, सहजता से परिपूर्ण होते हैं। पारिवारिक वातावरण होता है क्योकि वास्तव में अंतरा शब्दशक्ति एक परिवार है।
बहुत आनन्द की अनुभूति होती है और हमेशा यही लगता है कि दोबारा फिर जल्दी कोई समारोह हो फिर जल्दी से सब से मिलना हो, सृजन का सुंदर साहित्यिक मनभावन वातावरण अपनी ओर खींचता रहता है!!
इस तरह बड़ा ही मनमोहक अनुभव रहा मेरा अन्तराशब्दशक्ति परिवार में शामिल होकर!! और एक सदस्य होकर मैं यही कहूंगी…….”
हर क्षण,हर लम्हा नई मुस्कान चाहिए ।
ऊंचाइयां छू लूँ ,वो हर आयाम चाहिए ।
अंधेरों में खोना ,मेरी फितरत नहीं हैं,
मुझे अपने वजूद की पहचान चाहिए ।
रागिनी स्वर्णकार (शर्मा )
इंदौर