“अंतरा शब्द-शक्ति और आपका अनुभव”
अंतरा शब्द-शक्ति के साथ अपना अनुभव लिखना,,,,,,,सच पूछिये तो इसके लिये मेरी लेखनी के पास शब्द ही नहीं हैं। अंतरा ने ही मुझे अपने अस्तित्व,अपने वजूद से रूबरू करवाया।
जैसे एक कुम्हार,अनगढ़ मिट्टी को गढ़ कर एक नया रूप प्रदान करता है, वैसे ही अंतरा ने मुझे गढ़ कर एक नया स्वरुप दिया। मुझे अहसास ही नहीं था कि मेरे अंदर भी एक रचनाकार छिपा हुआ है। आज अंतरा मेरा अपना परिवार, मेरा अपना एक अभिन्न सा अंग बन गया है। मेरे साहित्यिक जीवन के सबसे गौरवशाली क्षण थे,जब मुझे अंतरा द्वारा “हिंदी कलमकार” का सम्मान और मेरे प्रथम हिंदी काव्य संग्रह “वाह!जिंदगी” का विमोचन किया गया।उस सम्मान समारोह की यादें मेरे ह्रदय पटल पर अमिट छाप की तरह हमेशा के लिये रच,बस गईं हैं ,और फिर मेरी लेखनी भी स्वतः बोल पड़ी—
“अंतरा के सम्मान की,
यादें हैं अनमोल,
क्या कहें,क्या न कहें,
मन ले रहा आज किलोल।।
प्रीति जी की मेहनत ये,
अर्पण जी का संग,
पिंकी जी की मुस्कान ये,
सदा रहेगी संग।।
दिनेश जी का बोलना,
ज्यों जाड़े की धूप,
हर एक रचनाकार का,
सपना हुआ सरूप।।
अक्षर-अक्षर शब्द बने,
शब्द बनी किताब,
गौरवशाली क्षण ये,
हर-पल रहेंगे याद।।
सजधज के साथी मिले,
एक-दूजे के संग,
ज्यों छिटके आकाश में,
इंद्रधनुष के रंग।।
उर्मिला जी का सानिध्य था,
वैदिक जी के आशीर्वचन,
अतुल जी का आशीष मिला,
बाजपेई जी के अनमोल वचन।
आज अंतरा के आँगन में,
गूंज रही आवाज है,
प्रीति जी के इस संघर्ष में
हम सब उनके साथ हैं।।
अंतरा के सम्मान की,
यादें हैं अनमोल।।
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साधना छिरोल्या
दमोह(म.प्र.)