एक लड़की थोड़ी पागल सी,…!
यह कहानी उस लड़की की है जिसके पागलपन या यों कहें जुनून का प्रतिफल है
“अन्तरा शब्द शक्ति”
एक दिन अचानक व्हाट्सएप पर एक ग्रुप में जोड़ा जाता है, जिसका नाम था “सृजन फुलवारी” मात्र 13 महिलाओं का समूह, मुझे लगा यूं ही मनोरंजन के लिए बना होगा !!परंतु धीरे-धीरे पता चला यहाँ ऐसी महिलाएं हैं जो कभी कभी कुछ लिखतीं हैं और अलमारी में छिपा देती हैं, सभी ने कुछ न कुछ लिखना आरंभ किया। बीज तो दबा ही था बस थोड़े खाद पानी की आवश्यकता थी- – धीरे धीरे विचारों की पलकन आना आरम्भ हुई और एक दिन फुलवारी का रूप ले लिया, जिसके परिणाम स्वरूप भोपाल में अंतरा शब्दशक्ति सम्मान 111 महिला रचनाकारों का अत्यंत गरिमामय एवं भव्य समारोह में किया गया ।समस्त भारत से आयीं महिला रचनाकार अभिभूत थीं इसे पाकर।
यह था “नारी का नारी के लिए नारी के द्वारा सम्मान” और फिर इस फुलवारी का नया नामकरण हुआ “अंतरा शब्द शक्ति” पहले घुटैयाँ चलती और फिर उंगली पकड़कर चलने वाली “अंतरा” अब अपने पैरों पर खड़ी हो चुकी थी, राह में अनेक उतार-चढ़ाव एवं अवरोधों को पार करती हुई यह एक ऐसी सशक्त मंच बन गई जिसने अनेक नवोदित और स्थापित रचनाकारों को पंख दिये जो आज साहित्याकाश में ऊंची उड़ान भर रहे है, कभी कभार लिखने वाली महिलाएं नित नए विषयों पर नित्य लिखने का अभ्यास कर अपने लेखन में नए सोपान रच रही थी ।
प्रत्येक रविवार को केंद्रीय रचनाकार के रूप में सम्मानित होकर “सृजन समीक्षा” पुस्तक के रूप में प्रकाशित होना आश्चर्यचकित कर देने वाला था ।
“सृजन फुलवारी”ने किचन गार्डन से राष्ट्रीय उद्यान का रूप ले लिया -अंतरावेब पत्रिका ,इंस्टाग्राम ,टि्वटर फेसबुक एवं स्वयं का प्रकाशन जिसमें रचनाकारों की 32 पेज की लघु पुस्तिकायें प्रकाशित हुईं तो अनेक रचनाकार देख कर रो पड़ीं, जिन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था उनकी रचनाएं एक पुस्तक के रूप में सामने आएंगी। यही नहीं उन्हें सम्मानित मंच से जब सम्मानित किया गया तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा।
भोपाल से प्रकाशित दैनिक लोकजंग” में निरंतर दो वर्षों से प्रत्येक रचनाकार की रचनाएं प्रकाशित हो रही है यह अपने आप में गर्व का विषय है ।
आसान नहीं था राजधानी से 300 किलोमीटर दूर बैठकर यह सब कर पाना . ….. ! मैंने स्वयं अनेक बार प्रीति को फूट-फूट रोते और टूटते देखा है परंतु उनकी लगन का ही फल है, जो जितनी बार टूटी उतनी ही निखरती गयीं।
डॉक्टर प्रीति सुराना जो मध्य प्रदेश के अंतिम छोर के एक छोटे से कस्बे में रहती हैं। अनेक स्वास्थ्य समस्याओं के साथ जिन्होंने वारासिवनी से दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेले तक का सफर तय किया उनके हमसफर समकित सुराना जी हमेशा उनके सम्बल रहे।
साहित्य के प्रति प्रेम और कार्य के प्रति निष्ठा व लगन का प्रतिफल है कि वे आज “नीव से कंगूरा” बन चुकी हैं और अनेक महिलाओं की आदर्श भी।
ऐसी सखी पर मुझे गर्व है । मेरी दिल से यही शुभकामना है आप नित नये सोपान चढ़े और नए नए कीर्तिमान रचें।
” जय हिन्दी”
“जय अन्तरा शब्दशक्ति”
-कीर्ति प्रदीप वर्मा