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चाहे अल्पावधि के लिए ही सही,
स्वनिवास,
अन्तर्मन में,
पारदर्शी,
नि:संदेह,
सदैव ही था,
अनायास,
केंद्रित करने पर,
अनुपम,
अनुभूति,
आनन्ददायी,
निर्गुण,
निर्मल।
यूँ ही नहीं,
कह गए,
ॠषि मुनि,
*तपस्या* की,
महत्ता।
विवेकपूर्ण व्यवहार,
दानशीलता,
विनयशीलता,
संयम और
स्वांकुश,
अल्पाहार,
मौनव्रत,
स्वावलम्बन,
उपासना,
सरल हैं,
किन्तु कठिन हैं,
क्योंकि,
यही तप है,
योग है।
नियम है,
निश्चय है,
विजय है ।
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पिंकी परूथी “अनामिका “
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