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तप के ही बल पर, जग नियंता हैं श्री हरि,
तप के ही बल पर, शिव शम्भू अविनाशी हैं,
तप के ही तेज से बने थे हम विश्वगुरू,
तेज पुंज वाले, हम देश के निवासी हैं,
तप से प्रसन्न होकर, देते थे देव वर,
किन्तु तप से हमारे सुर, दुष्ट घबराते हैं,
तप से ही नारी शक्ति रूपिणा कही गयी,
शीश आज भी सब,नारी शक्ति को नवाते हैं,
तप से धरा थी धन्य, किन्तु आज है नगण्य,
तप से विमुखता का परिणाम देखिये,
भीषण महामारी मृत्यु बांट रही विश्व को है,
हो रहा है कैसे सत्य,राम नाम देखिये,
सजल नयन लिए, है विश्व हमें देख रहा,
भाव भंगिमा है क्षीण रुख पर उदासी है,
घर में ही रहकर हम, तप साधना के द्वारा,
विश्व को दिखाएंगे, हम सर्व अविनाशी हैं!
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