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हे जगत् जननी,
हे अम्बे दयालु,
अपनी ममता का आँचल,
पसारे ही रखना।।
वो माँग का टीका,
और माथे की बिंदिया,
मेरे माँग का सिंदूर,
सजाये ही रखना।।
अपनी ममता का आँचल,
पसारे ही रखना।
वो नाक की नथनी,
और कान के झाले,
मेरे गले का हरवा चमकाये ही रखना।।
अपनी ममता——
वो बाजू बंद,
वो चूड़ी और कंगन,
मेरे हाथों की मेहँदी,
रचाये ही रखना।।
अपनी ममता—-
वो कमर की करधन,
वो पायल और बिछिया,
मेरे पाँव का माहुर लगाये ही रखना।।
अपनी ममता—-
वो बालों का गजरा,
वो लहँगा और साड़ी,
मेरे चूनर की लाज,
बचाये ही रखना।।
अपनी ममता का आँचल,
पसारे ही रखना।।
मैं तो अज्ञानी,
माँ जप-तप न जानूँ,
अपने ज्ञान की गंगा बहाये ही रखना,
अपनी ममता का आँचल,
पसारे ही रखना”।।।
साधना छिरोल्या
दमोह (म.प्र.)
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