Page Visitors Count: 730
पहरेदार है अडिग हिमालय ,
गंगा जिसकी आत्मा है ।
क़ाबा से कैलाश तक यहां,
कण कण में परमात्मा है ।।
जिसकी संस्कृति महान है ।
ये मेरा हिंदोस्तान है ।।
अहिंसा की तपोधरा है ,
भंडार रत्नों से भरा है ।
पावन भूमि ऋषियों की,
दिन रात जिन्होंने तप करा है ।।
—-
भरत का अभिमान है ।
ये मेरा हिंदोस्तान है ।।
चांद तक पहुंच गये है ,
क़दम फिर भी थमे नहीं है ।
बर्फ़ के हिमालय में भी,
बाज़ू हमारे जमे नहीं है ।।
गौतम गांधी का वरदान है ।
ये मेरा हिंदोस्तान है ।।
तप और साधना के बल से,
हमने बहुत कुछ पाया है ।
अपने कौशल के दम पर ही ,
बहुत कुछ करके दिखलाया है ।।
संगठन ही बस पहचान है ।
ये मेरा हिंदुस्तान है ।।
रचनाकार – डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
Total Page Visits: 730 - Today Page Visits: 1