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बढ़ रहा था दिखावे की ओर
शान ओ शौकत का मचा था शोर
किसी का भी न चलता था ज़ोर
आज घरों में वो बन्द हो गया
प्रकृति का किया है शोषण
कष्ट दिया नदियों को हरदम
हर जानवर का किया है भक्षण
आज मुख्य भोजन घरों में कन्द हो गया।
पबों , नाइट क्लबों में गुजरता था जीवन
भाग रहा था मानव हर पल प्रतिक्षण
समय की कमी से जूझता था हरदम
आज जीवन उसका मन्द हो गया।
बुजुर्गो का भूल बैठा सम्मान वो
संस्कृति का कर रहा था अपमान वो
प्रकृति ने थोड़ा सा कान क्या मरोड़ा
जाके प्रभु शरण में भक्त अंध हो गया।
मोबाइल, दोस्त, यार को दुनिया समझ रहा
थोड़ा सा क्या बढ़ा खुद को खुदा समझ रहा
आया समझ में जब किया थोड़ा सा तप- मनन
छोटे से कीटाणु से जीवन तंग हो गया।
डॉ. आशु जैन 26/03/2020
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