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आओ हे जग मात अब,संकट भये अपार।
फँसी नाव मझधार है,आकुल है संसार।।
रक्षा करिए मात अब, होता हाहाकार।
फैला भीषण ताप है,करो कष्ट संहार।
निशी पर्व आया नवल,भरिए आस उजास।
चैत्र पावनी प्रतिपदा,दुख संकट हो नाश।।
बन कर चंडी कालिका,आओ माँ संसार ।
रक्त बीज है नाचता,खप्पर धरो सँवार।।
नजर बंद सब हो गये,करते करुण पुकार।
मौत द्वार पर है खड़ी,मनुज हुआ लाचार।।
अमरबेल सा फैलता,संक्रामक ये रोग।
निज मुँह फाड़े दौड़ता,करता मानव भोग।।
शीघ्र हरो अब पीर माँ, देकर आँचल छाँव ।
चरण शरण सब राखिके, मिटा रोग हर ठाँव।।
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
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