बड़े- बड़े ज्ञानी कहते हैं, ये जग केवल माया है,
लेकिन ये जग संतों को ही सबसे ज्यादा भाया है।
मोह- माया का त्याग करो,देते हैं ये उपदेश सदा,
किन्तु मोह -माया के बंधन, उनको बाँधे रहे सदा।
एक स्त्री से सीखो जो अपनों की खातिर जीती है,
आँक सका न मोल कोई, वो कितनी तपस्या करती है।
नारी ने केवल अपनों की खुशियों पर ही ध्यान दिया,
सबकी खुशियों की खातिर अपनी खुशियों की बलिदान किया।
बेटी बहन पत्नी माँ के सब फर्ज़ निभाया करती है।
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र के सभी काम वह करती है।
ब्राह्मण बन शिक्षा देती, क्षत्रिय बन रक्षा करती है।
और वैश्य की भाँति गृहस्थी का संचालन वो करती है।
बच्चों का मल मूत्र साफ कर शूद्र का धर्म निभाती है।
इतने काम के बावजूद वेतन भी कुछ न पाती है।
साधु संत तो कथा नाम पर पैसे ऐंठा करते हैं।
मोह- माया का त्याग नाम पर मूर्ख बनाया करते हैं।
तप किसको कहते हैं, यह तुम नारी से सीखो जाकर,
बंद करो ये गोरखधंधा, लोगों को यूँ फुसलाकर।
-राधा गोयल,विकासपुरी,दिल्ली