Page Visitors Count: 438
तपोभूमि के धरतीपुत्रों,
तुम्हें तप अब करना होगा,
वन-कंदरा, प्रकृति को छोड़,
समाज से निर्वासित होना होगा.
मानव जाति है खतरें में आज,
विकट विषाणु कण-कण में है,
अदृश्य-अज्ञात वह छुपा कहां,
पहचानता नहीं उसे कोई जन है.
संहारक तांडव मचा रहा जग,
विज्ञान है बौना उसके समक्ष.
डरा-सहमा ठहरा है हर प्राणी
ऊहापोह में है समस्त राष्ट्राध्यक्ष.
लोक-कल्याण से जुड़े हम सब
चलो नया एक शपथ हम लें,
कोरोना को हरायें अपने बल पर,
अपने-अपने घर में हम बंद रहें.
पूनम (कतरियार)
Total Page Visits: 438 - Today Page Visits: 1