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हवाओं से संवाद कर लेता हूँ
शून्य का नाद सुन लेता हूँ
शब्द शब्द जोड़
उसके सौंदर्य की सीढ़ी बना
उतर जाता हूँ
अपनी हर नज़्म में
अपने हर गीत में
जिसके काव्य रस पर
अल्फ़ाज़ आ जाते हैं तैरते
जिसकी माला पिरोना
खूब आता है मुझे
ध्यान में उतर
पूरे प्राणों से
भावों के सुमेरू मनके तक
ले जाता हूँ
अपने एहसासों को
पूरे तन मन तप द्वारा
अस्तित्व से एकीकार हो जाता हूँ
लीन हो जाता हूँ
सुध बुध खो जाता हूँ
नही नही
मैं कोई तपस्वी नहीं
कोई ख़िताब नही मिला मुझे
न ही कोई पुरस्कार
फिर भी
मुझे गर्व है
मैं एक
अनजाना
अल्हड़
मस्त
कवि हूँ
हवाओं से संवाद कर लेता हूँ
शून्य का नाद सुन लेता हूँ
पंजाब
!!रजनी शर्मा!!
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