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अन्तरा शब्दशक्ति के सृजक सृजन समीक्षा विशेषांक में इस बार आप पढ़ेंगे, संगीता देवांगन जी, रायपुर को, हमें आप सभी की समीक्षा की प्रतीक्षा रहेगी, अपनी प्रतिक्रिया कॉपी करके फेसबुक और वेबसाइट के लिंक पर भी जरुर डालें।
निवेदक
संस्थापक
अन्तरा शब्दशक्ति संस्था एवं प्रकाशन
डॉ. प्रीति समकित सुराना
परिचय
नाम- संगीता देवांगन
पति का नाम – श्री नीरज देवांगन
पता – हर्ष विला, नया धमतरी रोड देवपुरी तालाब के पास, देवपुरी, रायपुर (छत्तीसगढ़)
कार्य – गृहणी
मो. – 9575983839
मै पंछी इस डाल की
“पापा मै पंछी इस डाल की,
रोज़ फुदकते रहती हूं,
हर रोज़ मैं गाते रहती हूं,
हर रोज़ चहकते रहती हूं”
“थाम लिए उंगली को ऐसे,
चोटिल होने से बच गए जैसे,
किसी डगर में कांटे उग जाएं तो,
हाथ फूल बन बिछ जाएं ऐसे”
“कुछ शब्द कभी घायल कर जाएं,
स्पर्श मरहम फ़िर वो बन जाय,
न उड़ने दो मुझको पापा,
अब कैद करो दिल के पिंजरे में,
मुझमें तुमने सांसे भर दी ,
धड़कती रहूं सदा तेरे जीवन में”
“इस बगियन की सोन चिरैया,
रोज़ फुदकते रहती हूं,
पापा मै पंछी इस डाल की,
हर रोज़ चहकते रहती हूं ।”
टूटा मेरा खिलौना
“बचपन से था देखा हमने,
एक घरौंदा रेत का,
लेकर आए गीली मिट्टी,
और रूप दिया किसी का,
जब मिलते थे दादा-दादी,
देखें सपन सलोना,
छूट गए सब, दूर गए सब,
देखो! टूटा मेरा खिलौना।”
“खेल भी खेले नदी-पहाड़,
लुक-छुप जाते पेड़ों की आड़,
जब पौ-सम-पा की लाइन पकड़ते,
खी-मी कर मिल और झगड़ते,
अब याद आते सब कोना-कोना,
देखो! टूटा मेरा खिलौना।”
“क्यों डांट नहीं पड़ती अब हमको,
इक झप्पी प्यारी हैं तरसाते,
जिद के आगे सब हार भी जाते,
और थककर थपकी देती हमको।”
“क्यों तरस रहे हैं उन लम्हों को,
मां देती चवन्नी खुशी से हमको,
और चूरन-चना-इमली सब खाते,
फिर झूलों संग हम भी लहराते,
अब चले गए सब सगा-पहुना,
देखो! टूटा मेरा खिलौना।”
“फिर आओ यादें ताजा कर लें,
कुछ हंसी-ठिठोली फिर से कर लें ,
समय चक्र तो फिर घूमेंगे,
वही बचपन, फिर आंगन खेलेंगे,
नई पीढ़ी में सब कुछ है संजोना,
अब न टूटेगा, मेरा खिलौना ।”
कान्हा को प्रेम पाती
“मैं राधा मोरे श्याम की,
लिखूं प्रेम पाती उनके नाम की,
नील आकाश बना लूं काग़ज़,
उस पर लिखूं धड़कन की अरज”
“हे मुकुंद-तुम बिरज के दुलारे,
मुख मोहन हर पल निहारें,
गूंज पैजनी की वृंदा में,
प्रित खनक जगाए ह्रदय में”
“तुम्हरी बोली मिसरी सी घोले,
तन-मन-जिया सब खाए हिचकोले,
तुम संग हिलोरे खाए सावन के झूले,
चित्त हर्षित हो जब, सब राधे-हरि बोले”
“जब झरना तन में अमृत छलकाए,
हरि प्रेम की ठंडक मुझे भिगाए,
कोमल किरणे सूरज की,
लिपटे तन पे जब,
मानो भुजाएं तुम्हरी थामी है मुझे अब”
“पाती के हर एक आख़र,
मेरी प्रेम रस में डूबी मदमस्त नज़र,
इस पत्र में सिमटी हुई मेरी लिखावट,
सहस्र बार जगाये बेचैनियों की हट “
“हे राधेय! समर्पित है मेरा प्रेम तुम्हें,
हृदय की गहराइयों में बंद रखी हूं तुम्हें,
मेरा रोम-रोम गिरिधर तेरा नाम पुकारे,
सम्पूर्ण जगत क्या, हम तन-मन सब हारे”
“गोपियों से घिरे जब तुम रासलीला करते हो,
सूर्य के जैसी जलन तन-मन में भरते हो,
चंचल-चपल कोरा कागज़ मन मेरा,
जिस पर लिखा है मनमोहन नाम तेरा”
“जी चाहे इस पाती को बिखेरूं फूलों के जैसे,
और प्रेम संदेश खुशबू बिखर जाए चहुंओर ऐसे,
हर कमल पंखुड़ी में तुम समाते कमलनयन,
दिन-रात की सुध नहीं ऐसी है तड़पन”
“इस पाती में मेरी प्रित भी कम पड़ जाती,
सुनो छलिए! हर आखर लिखते नयन भी शरमा जाती,
चूमते हुए इसे परेवा से भेज रही हूं नंदलाल,
पाती मिलते ही दर्शन दो, हे गोपाल।”
“राधे-राधे”
एक रुपए की कीमती पाती
“सुन मेरी मुन्नी पापा की बात,
जो याद बन, देगी तुम्हारा हर पल साथ,
जब तुम होगी बड़ी सयानी,
समझोगी तब बात की बानी,
बांधे रहना प्यार की कीमती डोर,
प्रीत पिया की और सास के आंचल की छोर,
ननंद सहेली, देवर छवि भाई की,
मस्ती इनकी बहुमूल्य माणिकी,
जेठ पिता,जेठानी मात रूप,
ससुर को संस्कारों से करना अभिभूत,
सदा बांधे रखना घर को,
स्वर्ग का सुख मिलेगा यहीं पर तुमको,
मेरी लाडो ,यही आशीष है मेरा तुम्हें,
सदा मुस्काना जब याद आउं मैं तुम्हें,
नयन में अश्रु कभी ना लाना,
प्रेम से घर आंगन महकाना।”
कहां ढूंढू मैं गरीब को
“जब कायनात ने काया दी,
और मन को रच उम्मीदें दी,
हर पल हम अपनी खैर मनाते,
पर इच्छाओ में काबू न पाते,
घड़ी पर सुई तो घूमती जाती,
मांग हमारी कम पड़ जाती “
“इक दिन सोचा कि कुछ दान करूं,
किसी गरीब की इच्छा को भरूं,
पूरी दुनिया जब घूमा मैं,
हर बंदा कुछ चाहे जग से,
जब भी दान करूं मैं उनको,
सोच के यही, कि वो दुआ दे हमको”
“सिक्के देखकर लगता है मन,
दान करने से बढ़ जाएगा, मेरा धन,
कपड़ों से जब उसका तन ढंक दूं,
मन लगता दुआओ से, घर वस्त्र से भर लूं”
“जब भी अन्न का दान करूं मैं,
ईश्वर से धन-धान्य का मांग करूं मैं,
जब किसी पर उपकार करूं मैं,
खुद पर पुण्य का लालच भरूं मैं,
अब बोलो, किस हक से उसे गरीब बुलाऊं,
जब खुद की इच्छा मैं, पूरी ना कर पाऊं”
“हर पल अपनी मांग बढ़ाता,
गरीब नहीं, मैं भिखारी कहलाता,
अब कहां ढूंढू मैं गरीब को,
जिसे हर क्षण ढूंढे एक दान दाता।”
धन्यवाद
संगीता देवांगन
रायपुर (छत्तीसगढ़)