आज *सृजक- सृजन विशेषांक* में मिलिये जबलपुर से स्मृति गुप्ता जी से। हमें आप सभी की समीक्षा की प्रतीक्षा रहेगी, अपनी प्रतिक्रिया कॉपी करके फेसबुक और वेबसाइट के लिंक पर भी जरुर डालें।
सभी मित्रों से निवेदन है कि आज पटल पर इन रचनाओं की समीक्षा के अतिरिक्त कोई भी क्रिया-प्रतिक्रिया या पोस्ट न डालें। पटल के सभी नियमों का पालन अनिवार्य रुप से करें।🙏🏼
*निवेदक*
संस्थापक
*अन्तरा शब्दशक्ति संस्था एवं प्रकाशन*
डॉ प्रीति समकित सुराना
*परिचय*
*नाम – श्रीमती स्मृति गुप्ता*
जन्म – 2/10/1973
जन्म स्थान – जबलपुर
शिक्षा- एमएससी वनस्पति शास्त्र (मेरिट) पंडित रविशंकर यूनिवर्सिटी बी एड रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी, जबलपुर
पिता- स्व सतीश चंद्र गुप्ता
माता- श्रीमती मंजुला गुप्ता
पति- श्री सत्यनारायण गुप्ता
पुत्री- श्रेया गुप्ता
पुत्र- निशीथ गुप्ता
कार्यक्षेत्र- गृहणी
*आत्मकथ्य*
लेखन में रुचि मन के भावों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है लेखन, अपने मनोविचारों को लोगों तक पहुँचाना। लेखन का शौक मुझे बचपन से ही था, लेकिन धीरे-धीरे पढाई और जाॅब और फिर गृहस्थी की व्यस्तताओं कारण समयाभाव में छूटता चला गया। अपनी दीदी अदिति जी की प्रेरणा से एवं अन्तरा शब्दशक्ति का साथ पाकर वर्षों बाद पुनः लिख कर एक अलग ही संतुष्टि महसूस हो रही है।
मेरे खोये हुए हुनर को जगाने के लिए मैं अपनी दीदी की बहुत आभारी हूँ साथ ही अन्तरा शब्दशक्ति की भी ।
*प्रकाशन*- भाव भाषा अभिव्यक्ति साझा संकलन (अन्तरा शब्द शक्ति प्रकाशन द्वारा), गहोई दर्पण, पत्रिका में भी मेरी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं।
*सम्मान*- भाव भाषा अभिव्यक्ति निर्झरिणी सम्मान (अन्तरा शब्द शक्ति प्रकाशन द्वारा)
*1*
*मोह जाल*
सुनो कान्हा ,,
बहुत सताते हो तुम मुझको ,,,,,
गिन गिन ,,,,,,,
कर मैं बदला लूँगी ,
पनघट पर तुम, मटकी तोड़े हो ,,,,
कुछ बोलो तो ,,,,,,,
बहियाँ मोरी मोड़े हो
माखन सारा ,,,,,,तुम खा जाते
साथ ग्वाल तुम ,,,,
अपने लाते ,
काम काज की,,,,, बेला में
बैठ कदंब तुम
बंसी हो बजाते
सुन कर ,,
बंसी की मधुर तान
सुध बुध ,,,,,,,
मेरी खो जाती है ,
दिल में धधकती हुई,,,,,,,
प्रतिशोध की ज्वाला
फिर ,,
निश्छल प्रेम बन ,
बरस जाती है ।
बैठ कर फिर मैं ये सोचे हूँ !!
किस मोह जाल में ,,
बांधा है तुम ने
क्यों !! मैं तेरे दिये ,,,,,,,
हर दर्द को
ओ कान्हा ,,,,,,,,,
यूँ हरदम ही,,
बिसराती हूँ ।।
*2*
*साधक*
चुन कर अपनी मंजिल को ,
साध अपने लक्ष्य को ,,
राहें अपनी बना ,
कदम तू अपने बढ़ा ।
राह के कंटक हटा ,
मनोबल अपना बढ़ा ,,
मार्ग में प्रशस्त हो ,
कदम तू अपने बढ़ा ।
गिराने वाले मिलेंगे कई ,
उठ खड़ा हो संम्हल ,,
पथ पर अग्रसर हो ,
कदम तू अपने बढ़ा ।
चलते तो हैं सभी ,
थम जातें हैं पर कई,,
पहुंचे वही गंतव्य तक ,
जो दृड़ प्रतिज्ञ हो ।
मन में इच्छा शक्ति रख ,
दुनिया की ना परवा कर ,,
समय के साथ कदम मिला ,
कदम तू अपने बढ़ा ।
सफलता चूमेगी कदम ,
मिल जायेंगी मंजिलें ,,
नाज होगा खुद पे फिर ,
जो तू कामयाब हो।।
*3*
*सच झूठ*
छोटी सी एक कहानी है ,
शायद बड़ी पुरानी है ,,,,,
कहती ये दादी नानी हैं ,
सच यहाँ सस्ता है ,,
झूठ मंहगा बिकता है ,,,,,,
सच्चा यहाँ रोता है ,,
अपना सब कुछ खोता है ,,,,,,
न्याय नहीं पाता है ,,
कानून क्योंकि अंधा है ,,,,,,,
सच्चाई हरदम रोती है ,
सिसकती है तडपती है ,,
घुटघुट के मरती है ,,,,,,
झूठ का दंभ बड़ा ,
झूठी शान में पड़ा ,,,,,,
हकीकत से परे रह ,,
लिप्त अंहकार में ,,,,,,
खुद को ही ख़ुदा समझ ,,
सच को कुचलने चला ,,,,,,
पड़ी जब उपर वाले की लाठी ,,
यहाँ वहाँ भगा फिरा ,,,,,,,
मिला ना ठौर फिर कहीं ,
कीमती महल धरा रहा ,,,,,,,
हर कर्म का फल हमें ,
मिल जाता है यहाँ ही ,,,,,,,,
स्वर्ग भी है यहाँ ही ,
और नरक भी यहीं है ।।
*4*
*तमन्ना*
दिल के कोरे कागज पर ,
मैंने पिया तेरा नाम लिखा ,
दिल की मैं क्या बात करूँ ,
सारा जीवन ही मैंने अपना ,
मेरे पिया तेरे नाम किया ।
सुख की बेला हो ,
अब या फिर हो ,
जीवन की मुश्किल घडियाँ ,
साथ सदा ही रहूँगी तेरे मैं ,
जब तक हैं चलें ,
साँसो की लडियाँ ,,,,,,,,,
तुम दूर भी हो तो लगता है ,
जैसे तुम साथ ही हो मेरे ,
खो जायें हम एक दूजे में ऐसे,
कि मैं दिल और तुम मेरी जान पिया।
तेरे कहे बिना ही ये जानतीं हूँ ,
तेरे दिल की धड़कन हूँ मैं ,
फिर भी मेरी ये तमन्ना है कि ,
एक बार तुम मुझसे ,
ये कहो ,,,,,,,,,
तुम से ही तो मेरा जीवन है ,
मेरी जाने मन,
तुम ही से हैं जीवन के,
सारे अरमान प्रिया ,
मेरे दिल के कोरे कागज पर ,
है सिर्फ तेरा ही नाम प्रिया ।
*5*
*तुम हो तो मैं हूँ*
*माँ*
तुम हो तो मैं हूँ ,,
तुम से ही तो मेरा वजूद है माँ
कितनी तकलीफें सह कर के
मुझे इस दुनिया में तुम लाई हो माँ।
जब आँख खुली तो सबसे पहले
मैंने अपने पास तुम्हें पाया
जीवन की कड़ी धूप में
सदा रखी तुमने अपने
आँचल की शीतल छाया ।
बढ़ती हुई उमर साथ तुम
बनीं सहेली मेरी
जीवन के हर पहलू से
परिचय मेरा कराया ।
चुन कर काँटे मेरी राहों से
सरल उन्हें बनाया
माली बनकर जीवन की
मेरी बगिया को महकाया।
घबराई जो कभी मैं
मैं हूँ ना
साथ तुम्हारे कहकर
सुखद एहसास मुझे कराया ।
कभी डाँटकर कभी प्यार से
हर बात मुझे समझाई
आसान नहीं राहें जीवन की
बातों में ये बात बताई ।
दी गई तुम्हारी सीखों ने
जिंदगी मेरी आसान बनाई
माँ बन कर अब मैंने
समझी उन बातों की गहराई।
*स्मृति गुप्ता*
जबलपुर