आज *सृजक- सृजन विशेषांक* में मिलिये दिल्ली की साहित्यकार राधा गोयल जी से। हमें आप सभी की समीक्षा की प्रतीक्षा रहेगी, अपनी प्रतिक्रिया कॉपी करके फेसबुक और वेबसाइट के लिंक पर भी जरुर डालें।
सभी मित्रों से निवेदन है कि आज पटल पर इन रचनाओं की समीक्षा के अतिरिक्त कोई भी क्रिया-प्रतिक्रिया या पोस्ट न डालें। पटल के सभी नियमों का पालन अनिवार्य रुप से करें।🙏🏼
*निवेदक*
संस्थापक
*अन्तरा शब्दशक्ति संस्था एवं प्रकाशन*
डॉ प्रीति समकित सुराना
*मेरा संक्षिप्त परिचय*
नाम:- राधा गोयल
जन्मतिथि:- 03/08/1948
कार्यक्षेत्र:- मुख्य लिपिक के पद से अगस्त 2008 में सेवानिवृत्त
पति का नाम:- श्याम सुंदर गोयल (retired D.C.A) दिल्ली सरकार
निवास स्थान- एफ ब्लाक,
विकासपुरी, नई-दिल्ली-110018
जन्मस्थान:- दिल्ली
शिक्षा:- स्नातक (पत्राचार माध्यम द्वारा)
अणुमेल
radhagoyal222@gmail.com
चलितभाष:-9811599770
*साहित्य में रुचि की वजह –*
बचपन से ही लेखन का शौक था। मेरा मानना है कि साहित्यकार समाज में बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है।
*उपलब्धियाँ एवं पुरस्कार*
प्रकाशित पुस्तकें :-
– *पाती प्रीत भरी भाग-1* व *भाग -2*
– *हादसा*
– *क्या-क्या न सहे हमने सितम*
*(एकल काव्य संग्रह)*
*काव्य मंजरी*
*निनाद*
*नई उम्मीद,नया आसमान*
*जीवन एक खिलौना*
*अजब अनोखे खेल*
*ये आपातकाल है*
-30 से अधिक सांझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित
-1976 से 1978 तक एक मासिक पत्रिका में हर माह रचना प्रकाशित होती थी।
– *2019 में विश्व पुस्तक मेले में मगसम द्वारा मेरी 25 रचनाओं का नि:शुल्क प्रकाशन व वर्ष 2020 व 2021 के लिये भी कई रचनाओं का चयन
प्रकाशनाधीन
– *नया मोड़*
– *तेरे नाम*
सम्मान अनेक मिले किन्तु कभी गिने नहीं।
*रचनाएँ*
(1)
*गणतन्त्र दिवस पर दंगा*
दिल के कोरे कागज पर लिक्खा है तेरा नाम,
राह दिखाने भटकों को, आना होगा घनश्याम।
तुमने भी देखा होगा गणतन्त्र दिवस पर दंगा,
कभी नहीं सोचा था, होगा इतना ज्यादा पंगा।
आज मनुज हो गया नीच और सबसे बड़ा लफंगा,
मानवता को शर्मसार कर नाच रहा है नंगा।
कितने बलिदानों के बाद ये सुखद दिवस आया था।
अपने देश के संविधान को गण मन ने अपनाया था।
गणतन्त्र दिवस का अभिनन्दन हर वर्ष धूम से करते।
हर राज्य की संस्कृति की झांकियों का दर्शन करते।
किन्तु हाय दो हजार इक्कीस ये कैसा दुर्दिन लाया?
किसान आंदोलन की आड़ में कैसा उत्पात मचाया।
धज्जियाँ उड़ीं कानून की, नंगी तलवारें लहराईं
कृत्य किया जो, उसे देखकर मानवता शरमाई।
कई दिनों से आन्दोलनकारियों के ठाठ रहे थे।
मेवा माल जलेबी लड्डू मुफ्त में बाँट रहे थे।
मुफ्त में सब कुछ मिलता हो, क्यों मेहनत करने जाएं?
नहीं चाहिए समाधान, जब माल मुफ्त मिल जाए।
माधव तुमको आज धरा पर आना ही होगा।
इस विकराल समस्या को सुलझाना ही होगा।
(2)
*झूठे हुए मुखर,सच्चे गूँगे हो गए*
झूठों का ही होता रहा बोलबाला,
सच्चाई का करते रहते मुँह काला।
झूठों की टोली सड़कों पर आई है,
दारू कम्बल रुपए बाँटने आई है।
सब्जबाग दिखलाए इतने बड़े- बड़े,
लोग प्रभावित हो गए फौरन खड़े- खड़े।
सच्चाई कितनी है उनके वादों में,
इन सब बातों से बिल्कुल अन्जान रहे।
एक सत्य का दीवाना आगे आया,
झूठ का पर्दाफाश किया और समझाया।
किन्तु किसी पर असर तनिक भी नहीं हुआ,
दारू का प्रभाव था दिल पर पड़ा हुआ।
पीट- पीटकर झूठों ने अधमरा किया।
सर हाथों में थाम के सच्चा सोच रहा।
झूठों का क्यों इतना ज्यादा जोर रहा?
*झूठे मुखर हुए सच्चे गूँगे हो गए*
हाय देश के भाग्य कहाँ जाकर सो गए?
-राधा गोयल
(3)
*नींद*
कभी मेरा मन
कमल की तरह खिला करता था
आज भी खिलखिलाना चाहती हूँ
बुलबुल की तरह चहचहाना चाहती हूँ
कोयल की तरह गुनगुनाना चाहती हूँ
लेकिन आज मेरे मन का कमल बिल्कुल मुरझा गया है।
ना कोई रंग है
*ना कोई उमंग है*
ना कोई खुशबू है
मन बड़ा अशान्त है
मरती हुई संवेदनाओं को देख
अमर्यादित यौनाचार को देख
छोटी छोटी बच्चियों की
आबरू लुटते देख
रोज- रोज संसद को ठप्प होता देख
हर बात पर राजनीति होते देख
देश के कर्णधारों की
गैर जिम्मेदाराना हरकतों को देख
उनकी उदासीनता को देख
उन्हें *नींद* में सोया हुआ देख
और यह सोचकर
कि क्या हमने इन्हें
इसी बात के लिये चुना था?
बस यही सोच- सोचकर
मैं शोकाकुल हूँ
और मेरे मन का कमल
मुरझा गया है।
देश के कर्णधारों
*नींद* से जागो
देश पुकार रहा है
कहीं ऐसा न हो कि
बहुत देर हो जाए
*और नीरो…*
*बंसी बजाता रह जाए*
-राधा गोयल
(4)
*क्यों मौन रहे*
एक प्रश्न पूछूँ तुमसे, उसका उत्तर बतलाओ तो,
क्यों मौन रहे उस द्यूत सभा में, जरा मुझे समझाओ तो?
माना कि द्यूत निमण्त्रण को स्वीकारना क्षत्रिय धर्म था पर,
भाईयों को दाँव पे रख देना, क्या क्षत्रिय धर्म कहाता है?
खुद को भी हार चुके थे जब,
तब किस अधिकार से पत्नी को भी दाँव पे तुमने लगा दिया?
तुम धर्मराज कहलाते हो,पर धर्म को तुमने लजा दिया।
शकुनि कपटी है… पता था यह, फिर भी क्यों समझ नहीं आई?
भरी सभा में निज भार्या की इज्जत तुमने लुटवाई।
पाँच पति बैठे थे वहीं , चुपचाप दृश्य देखते रहे।
केवल मेरे क्रन्दन के स्वर उस राजसभा में गूँज रहे।
कहा कर्ण ने वेश्या और दुर्योधन ने जंघा पीटी,
चुपचाप देखते रहे सभी, मैं दृश्य आज तक नहीं भूली।
केश पकड़कर मुझे घसीटता ले आया जब दु:शासन,
धृतराष्ट्र मौन देखते रहे, पर हिला नहीं उनका आसन।
मैं रजस्वला एकवस्त्रा थी, यह बात सभा में बतलाई,
इतना सुनने के बाद भी, लाज किसी को तनिक नहीं आई।
निर्वस्त्र मुझे करने की, हरसंभव कोशिशें रखीं जारी,
केवल कृष्ण कन्हैया ही, आए बन कर तारनहारी।
हे भीष्म पितामह! बतलाओ उत्तर दो, चुप क्यों हो… बोलो?
हे राजगुरू! क्यों मौन रहे, उत्तर दो, चुप क्यों हो… बोलो?
हे ज्येष्ठ! देख नहीं सकते थे, पर तुमने सभी सुना होगा,
पर पुत्रमोह में अंधे हो….कानों में तेल भरा होगा।
इस भरी सभा में द्रुपद सुता सबसे यह प्रश्न पूछती है।
तुम मौन बने देखते रहे,क्या यही रीत कुरुकुल की है?
जो राज्य किसी महारानी की इज्जत से यूँ खिलवाड़ करे,
उस राज्य को जीवित रहने का, किंचित भी क्यों अधिकार रहे?
चुप क्यों हो… क्या मेरे प्रश्नों का उत्तर देते डरते हो?
इस घोर निन्दनीय कर्म पे भी क्यों चुप्पी तान के बैठे हो?
सौगन्ध आज खाती हूँ मैं, सारा कुरुवंश नष्ट होगा।
दुःशासन की छाती के लहू से केशों का सिंचन होगा।
-राधा गोयल
(5)
*मैं बिकाऊ हूँ*
हाँ हाँ *मैं बिकाऊ हूँ*
मुझे कोई भी पार्टी खरीद सकती है
अरे कम से कम एक बार ही सही
यदि सांसद बनूँगा तो मुफ्त बंगला,गाड़ी,हवाई यात्रा,
टेलीफोन सुविधा
पाँच साल बाद अगले चुनाव में हार भी जाऊँ
तो जिंदगी भर पेंशन मिलती रहेगी
मुझे अपने परिवार के किसी बच्चे को सेना में नहीं भेजना।
क्यों भेजूँ सेना में?
क्या मरने के लिए??
और मरने के बाद उन्हें पेंशन भी न मिले??
कुछ दिनों तक कुछ लोग आँसू बहा लेंगे,
फिर कोई उनकी तरफ नजर उठाकर भी नहीं देखेगा।
मेरे बच्चे,पत्नि और माँ बाप किस हाल में रह रहे हैं?
कोई खोज खबर भी नहीं लेगा।
पहले भी कितने ही देशभक्त
गुमनामी की अंधेरों में मर गये।
केवल कुछ लोगों को नाम मिला,
और कुछ को केवल अपमान मिला।
कई तो ऐसे थे, जिनका दुनिया नाम तक नहीं जानती
इसलिए मेरे परिवार के किसी सदस्य को सैनिक नहीं बनना।
मैं खुद ही कह रहा हूँ कि *मैं बिकाऊ हूँ।*
*मुझे किसी पार्टी से कोई लेना देना नहीं है।*
*मुझे सिर्फ अपने स्वार्थ से मतलब है।*
मैं क्यों सोचूँ कि…
कुछ स्वार्थी लोगों के कारण ही
देश हजारों वर्षों तक गुलाम रहा।
मुझे यह सब नहीं सोचना
मैं नहीं चाहता कि मेरे बाद,
मेरा परिवार भूखों मर जाए।
इसीलिए कहता हूँ कि *मैं बिकाऊँ हूँ।*
*जो मुझे खरीद सकता है,वह खरीद ले।*
मुझे किसी पार्टी से कोई लेना देना नहीं है।
पैसा मिलेगा
तो कम से कम मेरी सात पीढ़ियाँ बैठ कर आराम से खायेंगी।
और मेरे गुणगान गायेंगी।
मुझे पता है लोग मेरे बारे में कहेंगे कि *मैं बिकाऊ था।*
*मैं तो खुद ही कह रहा हूँ कि मैं बिकाऊ हूँ।*
जिन्होंने आजादी के लिए
इतनी बड़ी बड़ी कुर्बानियाँ दीं,
उन्हें क्या मिला????😢
-राधा गोयल, विकासपुरी,दिल्ली