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आज *सृजक- सृजन विशेषांक* में मिलिये कोटा की साहित्यकार *लीना शर्मा* जी से। हमें आप सभी की समीक्षा की प्रतीक्षा रहेगी, अपनी प्रतिक्रिया कॉपी करके फेसबुक और वेबसाइट के लिंक पर भी जरुर डालें।
सभी मित्रों से निवेदन है कि आज पटल पर इन रचनाओं की समीक्षा के अतिरिक्त कोई भी क्रिया-प्रतिक्रिया या पोस्ट न डालें। पटल के सभी नियमों का पालन अनिवार्य रुप से करें।🙏🏼
*निवेदक*
संस्थापक
*अन्तरा शब्दशक्ति संस्था एवं प्रकाशन*
डॉ प्रीति समकित सुराना
*परिचय*
आज अपना परिचय देते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है। क्योंकि अभी तक तो बच्चों के स्कूल, घर के राशन कार्ड, मेरे आधार कार्ड, एटीएम के लिए ही अपना परिचय देते आई हूंँ। परंतु आज अंतराशब्दशक्ति के अंतरराष्ट्रीय पटल पर मेरा परिचय….मेरे लिए बड़ी उपलब्धि से कम नहीं!
मेरा नाम लीना शैलेंद्र शर्मा है। मैं अपने दिन का अधिकांश समय में एक गृहणी की भूमिका ही निभाती हूंँ। इस व्यस्त समय के बीच से 4 से 5 घंटे का समय एक शिक्षिका की तरह। मुझे बहुत अच्छा लगता है, पढना और पढाना। इसका दूसरा कारण यह भी… मैंने विज्ञान विषय में स्नातकोत्तर ,साथ ही बी.एड, एन. टी. टी. भी किया है। कुछ समय तक अध्यापन का कार्य विधालय में भी किया परंतु घर और बच्चों की देखभाल के कारण विधालय से अवकाश ले लिया।
एक बात और सही मायने में तो अन्तरा ने ही मेरे अंदर छुपी लेखन की प्रतिभा का परिचय मुझसे कराया और अंतरा से मैं जुडी़ लॉकडाउन के वक्त फेस बुक से ।
अन्तरा के माध्यम से ही मैंने अपने लेख,कहानी,कुछ तुकान्त और कुछ अतुकांत टूटा-फूटा जैसा भी लिख पाती हूंँ, इसी पटल के माध्यम से ही बाहर निकाला। दिन प्रतिदिन अन्तरा पटल के माध्यम से गुणीजनों के संरक्षण में कुछ ना कुछ सीखती ही हूंँ।
*साहित्य में रुचि की वजह*
लिखने और पढ़ने का शौक तो मुझे बचपन से ही था । पर इसके पीछे भी मजेदार किस्सा है जब मैं बहुत छोटी थी तो मेरी बुआजी जो कि मुझसे काफी बड़ी है। तब तक उनका विवाह नहीं हुआ था। वह अपनी डायरी लिखती थी। मुझे अच्छी तरह याद है ,’उनकी हरे रंग की डायरी’! उस डायरी में प्रथम पृष्ठ पर घर में सबके जन्मदिन, शादी की सालगिरह उसके बाद प्रत्येक पन्ने पर एक गीत , उसमें गीत के साथ फिल्म का नाम, साल, संगीतकार, गीतकार, गायक और गायिका सभी लिखे होते थे। उनकी डायरी उठाकर चुपके से गीतों को पढ़ती रहती थी। मुझे बहुत छोटेपन से ही….!
१……चांदी की दीवार न तोड़ी प्यार भरा दिल तोड़ दिया
२……ए मालिक तेरे बंदे हम
३…..राजा की आएगी बारात
४….आवारा हूंँ
इस तरह के बहुत सारे गाने याद हैं । इन सब गीतों को अपनी कॉपी में भी लिख लेती थी और अपनी बुआ जी की तरह ही रेडियो में से सुनकर गाने लिखने की कोशिश भी करती थी। जबकि उसका अर्थ कुछ भी मालूम नहीं होता था और इन्हीं कारनामों को करते-करते कई बार उनके हाथ की चपत भी खाई। शायद यहीं से मेरे शौक की शुरुआत रही होगी ।
बस यही है मेरा , मेरा छोटा सा परिचय।
*उपलब्धियां एवं पुरस्कार:* कुछ सांझा संकलन, भव भाषा निर्झरिणी सम्मान ,समय साक्षी 2020 सम्मान, साहित्य सेवी सम्मान, लोक प्रिय रचनाकार सम्मान!
*प्रकाशन-* अन्तरा शब्दशक्ति प्रकाशन
*पाँच रचनाएँ।*
१.. यकीन
२. डरती हूँ मैं
३. संबंध
४. घुलना-मिलना
५. कौन करे
*यक़ीन*
है तुझ पे अडिग विश्वास मुझे,
बस यही….तसल्ली काफी है।
इस पार अंधेरों ने घेरा..
उस पार रोशनी बाकी है।
दिया तूने मुझे सब कुछ मालिक,
फिर कैसे तमस से घिर, डर जाऊँ।
गुलशन की राह पकड़नी है।
कांटों से दोस्ती जारी है!
इस पार अंधेरों ने घेरा..
उस पार रोशनी बाकी है!!
हैं कड़ी इम्तिहान की घडियांँ
तसल्ली रख लांघ मैं जाऊंँगी।
लंबी छलांगे …….भरने को
दो कदम लूं पीछे.वाजिब है।
इस पार अंधेरों ने घेरा,
उस पार रोशनी बाकी है।।
तन तूने दिया मुझको मालिक,
मन अर्पण तुझको करती हूंँ..
अब मस्त मलंग रह लेती हूँ
क्या इसमें भी तू राज़ी है!
इस पार अंधेरों ने घेरा,
उस पार रोशनी बाकी है।
लीना शर्मा
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*डरती हूँ मैं*
हाँ मैं डरती हूंँ!!
अक्सर…..
सहम ,झिझक ,ठिठक
कर भी चलती हूंँ
डरती हूँ…..
जब कोई ….
बगैर गलती के भी टोकता है
इसका असर….,
मेरे बच्चों पर ज्यादा पड़ता है
वो जानते हैं!!
माँ सबकी सुन जरूर लेती है
पर विरोध के शब्द….
बोल नहीं पाती
शब्दों को ज्यादा
तोल मोल नहीं पाती
माँ को भाता है
अच्छे लच्छेदार पराठे बनाना
नहीं आती घुमावदार बातें बनाना
माँ को आता है लटपटी,चटपटी, लबाबदार सब्जी बनाना
नहीं आती तडकेदार, चटखोरी बातें बनाना
मांँ को भाता है……
सोंधी खुशबू का बघार लगाना
नहींआता मगर
इधर-उधर की बातों का
तड़का लगाना……
माँ को बहुत भाता है
मीठे में जलेबी बनाना
पर नहीं आता किसी को
टेडी मेढी बातों में उलझाना
मांँ को भाता है साफ-सफाई,
नेक-नियति से घर चलाना
नहीं पसंद आता
गंदगी और बुराई में लिपट
आगे बढ़ जाना …..
हर कला में माहिर है माँ
पर चापलूसी की कला
उसको नहीं आती
मेरे बच्चे सब…..
जानते हैं समझदार है
समझते हैं मुझे वक़्त पर
संभाल लेते हैं …….
उन्हें पता है……..
बहुत डरती है माँ
लीना शर्मा
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*संबंध*
सुनो….
कुछ बासी से
हुए रिश्ते
दिल के एक कोने में
पड़े हैं जाने कब से
संबंधों का नाम जोड़ा गया
इन रिश्तों संग मेरा
उनके रोज वही पुराने सवाल
मेरे नित नए जवाब
अब मैं थक गई हूंँ
दे- दे कर जवाबों को
कब तक…..कब तक
अपनेपन का मुखौटा पहनूंँ
उबन, घुटन, चुभन सी
बढ़ गई है……
दिल के उसी कोने में
आज इन सब प्रश्नों को
एक गमले की मिट्टी में
दफन कर आऊंँगी
कुछ सड़ी हुई यादों से
अच्छी खाद बनेगी
रोंप दूंँगी …..
खूबसूरत से मुस्कुराते
फूलों से नए रिश्तों को
इसी मिट्टी में
लीना शर्मा
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*घुलना-मिलना*
कुछ-कुछ तेरे जैसी
मैं तो यार हो गई
तेरे इश्क में ही घुलने को
तैयार हो गई,
कुछ कुछ तेरे जैसी……
जिक्र तेरा जब होता
इत्र सी महक हूँ जाती
पगली हवा सी फिरती
बदली से टकराती
गुल थी मैं तो… लेकिन
अब गुलजार हो गई
तेरे इश्क में ही घुलने को
तैयार हो गई
कुछ कुछ तेरे जैसी……
मेरा बन संवर के चलना
सबसे यूँ घुलना -मिलना
तेरा नाम लेकर सारी
रात में तारे गिनना
तेरी चाहत की…. साजन
तलबगार हो गई
तेरे इश्क में घुलने को
तैयार हो गई
कुछ कुछ तेरे जैसी……
लीना शर्मा
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*कौन करे*
दिल से दिल का करार कौन करे
तुम पर अब एतबार कौन करे।
तुमने अपनी कसम दे बांधा कभी,
उस पर पर जां निसार कौन करे।
मेरी उलझी लट सुलझाते थे तब,
अब दिल को बे करार कौन करे।।
आंखों को अब कोई उम्मीद नही,
तो तुम्हारा अब इंतजार कौन करे।
बताना तो तुम्हारा मन करे कभी,
इस तरह से इश्क प्यार कौन करे।।
लीना शर्मा