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आज सृजक- सृजन विशेषांक में मिलिये बैलाडीला, छत्तीसगढ़ के साहित्यकार ओमप्रकाश गुप्ता जी से। हमें आप सभी की समीक्षा की प्रतीक्षा रहेगी, अपनी प्रतिक्रिया कॉपी करके फेसबुक और वेबसाइट के लिंक पर भी जरुर डालें।
सभी मित्रों से निवेदन है कि आज पटल पर इन रचनाओं की समीक्षा के अतिरिक्त कोई भी क्रिया-प्रतिक्रिया या पोस्ट न डालें। पटल के सभी नियमों का पालन अनिवार्य रुप से करें।🙏🏼
परिचय
नाम- ओमप्रकाश गुप्ता
जन्मतिथि-15/01/1955
स्थान – कानपुर (उ0प्र0)
शिक्षा – एम0एस0सी0(गणित ), एम0ए0(अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र ), बी0एड0
पत्नी – श्रीमती पूनम गुप्ता, संस्कृत शिक्षिका,डी0ए0वी0पब्लिक स्कूल
फोन नं0:9424278427
पद- अवकाश प्राप्त प्रवक्ता( गणित)
प्रकाशन: (1)पर्यावरण और मानव (कविता),विज्ञान त्रैमासिक पत्रिका 1992,विज्ञान परिषद,प्रयाग
(2) आकाशवाणी, जगदलपुर से काव्य पाठ,कवि गोष्ठी,छात्रीय कार्यक्रम (विज्ञान कार्यक्रम) और “अध्यापकों के लिए ” में प्रतिभागी, आयोजक और प्रशिक्षक के रूप में 1987 से1997 तक सक्रिय ।
(3)राष्ट्रीय खनिज विकास निगम,भारत सरकार के राजभाषा प्रकोष्ठ द्वारा वार्षिक आयोजन जैसे: राजभाषा तकनीकी सेमिनार,राजभाषा दिवस,राजभाषा पखवाडा,कवि सम्मेलन, पर्यावरण, उत्पादकता सप्ताह आदि में 19987से 1997 तक सक्रिय प्रतिभागिता।
(4)एन0सी0ई0आर0टी0,नई दिल्ली की त्रैमासिक पत्रिका “स्कूल साइंस’2001में ऑरिगैमी से गणित प्रशिक्षण पर लेख प्रकाशित और 2012 में राष्ट्रीय गणित दिवस पर अधिवेशन मे गणितीय लेख का प्रस्तुतिकरण
(5) जी0बी0पन्त नगर यूनिवर्सिटी, पंतनगर, नैनीताल के अंतराष्ट्रीय अधिवेशन 2008 में गणित लेख का प्रकाशन ।
(6) दिल्ली विश्वविद्यालय,साउथ कैम्पस, नई दिल्ली के राष्ट्रीय अधिवेशन 2009 में गणित विषय पर लेख प्रकाशन
(7) मणिपुर यूनिवर्सिटी,इम्फाल के राष्ट्रीय अधिवेशन 2010 में गणित विषय पर लेख प्रस्तुति और प्रकाशन।
(8)अन्तरा शब्द शक्ति प्रकाशन संस्था द्वारा “मेरी जीवन यात्रा” पुस्तक का प्रकाशन 2020
सम्मान :
(1) अनुसूचित जाति /अनुसूचित जन जाति संस्था,दन्तेवाड़ा द्वारा अंबेदकर जयंती के अवसर” शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान” पर सम्मान
(2) साहित्य साधक सम्मान, 2020, अन्तरा शब्द शक्ति संस्था से।
ईमेल-opgupta.kdl@gmail.com
मोबाइल नंबर- 9424278427
पता: II/596,बारसा कालोनी,किरंदुल,दन्तेवाड़ा (छ0ग0)
आत्मकथ्य
संघर्षपूर्ण जीवन,उतना ही मीठा फल।”हरिऔध” जी की “एक बूँद”कविता जैसे हमारे जीवन के प्रसंगों पर चरितार्थ होती रही।अंधकारमयी से परिवेश पर स्नेहिल माँ का पुत्र के भविष्य के प्रति जिजीविषा, दूरदृष्टि और शिक्षकों का मेरे प्रति पुत्रवत प्रेम चिर स्मरणीय रहेगा। उस समय के कवि श्री नीरज,बालकवि बैरागी , एकता शबनम,बरखा रानी,पवन दीवान और न जाने कितनों से प्रेरणा मिलती रही।उनके भाव रस से सराबोर काव्य पाठ का पूरी रात रस का स्वाद और नियति प्रबंधन द्वारा प्रदत्त”मानस शिशु,मानस किशोर” उपाधि से मानस अनुरागी और आस्तिक बना रहा।विद्यार्थी जीवन में सर्वोदय मंडल से जुडे होने के कारण संत विनोबा भावे,आचार्य जे0 बी0 कृपलानी,नेता जयप्रकाशनारायण से भी सत्संग मिला। गणित अध्यापन मेरी जीविका का प्रमुख साधन होने के कारण हम इसके दुरूहता को दूर करने और सरल, सुगम्य रोचक करने के तरीके को कक्षाओं,शासकीय प्रकाशनों, कार्यशालाओं,राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर अधिवेशनों पर विचार-विमर्श करता रहा।काव्य और कथा लेखन एवं वाचन के क्षेत्र में जबसे रुचि ली तो ऐसा लग रहा कि मैं एक विशाल समुद्र के तट पर बैठे कुछ सीपियाँ चुन रहा हूँ ।यह दुनियाँ अनेकों विभूतियों से युक्त है।मैं अपने परिचय के बारे में लिखना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा लग रहा है।
रचनाएँ
1-अहसास : एक पिता होने का
हम तो चाॅद सितारे उस परिवार के,
जिसमें पिता एक आकाश होता है।
आसमां से ऊंची होती है वह जगह,
जहाँ बस पिता का ही वास होता है।1।
वह नहीं, तो लगता घर की छत नहीं,
जरा सी हवा में तूफान नजर आता है।
ज्वाला के गोले से लगते सारे आत्मीय,
झरोखे से ,शहर वीरान नजर आता है।2।
2- बस इतना ही बहुत है(जीवन साथी के प्रति)
भले ही मजधार में, जीवन की नौका हो,
मैं हूँ , तुम भी हो,बस इतना ही बहुत है।
नीरव में कश्ती,साहिल हो भले लापता ,
तुम हो खेवनहार,बस इतना ही बहुत है।1।
जहाँ पे हम दो रहेंगे, बस्ती वही बसेगी,
भरोसा है हमें तुम पर इतना ही बहुत है।
साँसों में गर्माहट है,हम दोनों में धीरज है,
हौसला है बाजू में, बस इतना ही बहुत है।2।
3-अतीत में खोई नवविवाहिता (पति से कथन)
हमने माथे पर यह बिंदी लगाई,तेरे नाम की,
कभी नयनों में आये थे,मेरे सपनों की तरह।
सालिगराम सा पूजा था हमारे मन-मंदिर ने,
अब मेरे जीवन नैया में हो,पतवार की तरह।1।
शिथिल कर दिये अतीत के स्नेह बंधनों को,
बस गये हो तुम्ही अब एक परमेश्वर की तरह,
सजने के लिए बचा कुछ भी न पास अब मेरे,
खुद को लुटाया तुम पे एक अलंकार की तरह।2।
4- होता है: सुत भी पराया धन
मेरे सुत,तेरे शुभ आगमन से पहले,
भामिनियों के नूपुर बजे थे रुपहले,
पता ही न चला,जन्म से अभी तक,
खुशियों के हिसाब लगाते जब तक।1।
बसे उस शहर सूना करके मेरा गाँव,
सूने हुए खिलौने और नीम की छाँव,
मुझे लगता हैं,तनय भी पराये होते हैं,
सूनी ऑखों के ऑंसू भी खारे होते हैं ।2।
5-होगी जरूर
आयी होगी तुझे याद जब भी मेरी,
तेरी तन्हाई तो महकी होगी जरूर।
आह तक न की,जाने क्या बात थी,
कोई मजबूरी तो तेरी रही है जरूर।1।
आज अरसों में मिलने आई हो तुम,
यह वक्त है,कर लेते वे शिकवे गिले।
अब कितने भी तूफां हों मेरे राह में,
कसम से,कभी न जुदा होने जरूर।2।