वेबसाइट का लिंक
फेसबुक पेज का लिंक
https://www.facebook.com/253741051744637/posts/1165021657283234/
फेसबुक समूह का लिंक
https://www.facebook.com/groups/antraashabdshakti/permalink/3662655837116860/
आज सृजक- सृजन विशेषांक में मिलिये राजस्थान की साहित्यकार मीनाक्षी राजपूरोहित “मीनू” जी से। हमें आप सभी की समीक्षा की प्रतीक्षा रहेगी, अपनी प्रतिक्रिया कॉपी करके फेसबुक और वेबसाइट के लिंक पर भी जरुर डालें।
सभी मित्रों से निवेदन है कि आज पटल पर इन रचनाओं की समीक्षा के अतिरिक्त कोई भी क्रिया-प्रतिक्रिया या पोस्ट न डालें। पटल के सभी नियमों का पालन अनिवार्य रुप से करें।🙏🏼
निवेदक
संस्थापक
अन्तरा शब्दशक्ति संस्था एवं प्रकाशन
डॉ प्रीति समकित सुराना
परिचय
नाम – मीनाक्षी राजपूरोहित ” मीनू “
पिता – विशन सिंह राजपूरोहित
माता – पुष्पा राजपूरोहित
पता – पोस्ट – बस्सी
ज़िला – नागौर राजस्थान, पिन, 341512
ईमेल vishnusingh0318@gmail.com
शिक्षा – स्नातकोत्तर हिन्दी साहित्य , समाजशास्त्र , इतिहास (महर्षि दयानन्द सरस्वती यूनिवर्सिटी अजमेर (राजस्थान)
जन्म- 5 जनवरी (बस्सी)
कार्यक्षेत्र – गृह कार्य एवं विद्यार्थी
प्रकाशन – सांझा संग्रह अनोखा वर्ष 2020, (अन्तरा शब्द शक्ति परिवार,द्वारा) स्वाभिमान है बिटिया (ब्रहमधाम एक्सप्रेस )
दैनिक भास्कर( राजस्थान )
“वृद्धाआश्रम “
“शून्य”, “दाता”
(सपना के अनुबध सांझा काव्य संग्रह )
“प्रेमपाती “
(अन्तरा शब्द सक्ति परिवार द्वारा )
संस्कारों की विरासत (ब्रह्मधाम मासिक पत्रिका)
सम्मान –
समय साक्षी सम्मान 2020,
यूथ वर्ड इंडियन आइकॉन अवार्ड 2021 (New Delhi ),
कलम की सुगंध 2021,
स्नेह सेतु सम्मान,
काव्य रत्न सम्मान।
आत्मकथ्य
लेखन कुछ नया करने का एक आयाम है। अपने भाव, मन की मनोदशा को उतारना लिखना। क्योंकि साहित्य के बिना संस्कृति उदासीन है । मेरे जीवन का उद्देश्य है कि मेरी रचना पढ़कर किसी के जीवन को अगर दिशा मिली तो मेरा लिखना सफल होगा । लिखना कोई मनोरंजन नहीं होता यहां लेखक अपने ह्रदय की गहराइयों से रचना को उकेरता है । हम हमारे जीवन को एक दिशा दे सकते हैं। “एक कवि की कल्पना शब्दों में बंधी नहीं होती” हम सृजन को किसी भी रुप मे देश -भक्ति ,राष्ट्रीय एकता, प्रेम, मानवता माँ-पिता …
अत! साहित्य का आधार ही जीवन है। साहित्यकार आत्मसंतुष्टि, सुखानुभूति, प्रेरणा, जागृति संवेदना वह मानवीयता को प्रभावित करना है।लेखन अपने खुद के मनोभावों को व्यक्त करना जनमानस तक अपनी बात पहुंचाना । अपने काव्य द्वारा सामाजिक चेतना को जगाना में चाहती हूँ कि मैं ऐसा कुछ लिखूं कि मेरे लिखने से अगर मैं किसी के विचार बदल पाई तो मैं धन्य समझूंगी। बचपन से लिखने का शौक था। पर कोराना काल मैं फिर से लिखना शुरू किया। वैसे माँ बीमार थी तो माँ पर कुछ ना कुछ लिखना आदत हो गई तो मेरे बड़े जीजा राज कंवर ने मुझे लिखने के लिए जो प्रोत्साहित किया आदरणीय प्रीति मैम उनके लिए हृदय से आभारी हूँ। आप सभी बड़ो का व अंतरा शब्द शक्ति परिवार का साथ और आशीर्वाद बना रहे ऐसी उम्मीद के साथ अपनी लेखनी को आगे बढ़ाने की कोशिश करती हूँ
धन्यवाद प्रणाम ।।
मीनाक्षी राजपूरोहित मीनू
1) “मेरा अस्तित्व मेरा गाँव
मेरी पहचान मेरा गाँव”
माना कि आज सबको शहर पसंद है,
तो तुम गांव नहीं आते हो …
और मेरे गांव को गवार कहते हो ।
पता है हमें औकात शहर की ..
रिश्तो के अपनेपन को पन तार-तार देखा है।
सूने पड़े मकान, वीरान होते गांव
उजड़ रहा प्रेम मां बाबा का ।
होगा याद सबको ?
वह गांव का छोटा सा स्कूल
जहा सब साथी सखा शिक्षा
और संस्कार लेने जाया करते थे,
जहां गुरुजनों का सम्मान किया करते थे।
होगा याद सबको ?
हमारा वो बचपन जहां बेफिक्र होकर जिंदगी जिया करते थे,
नदी तालाबों
पर कूद-कूद कर नहाया करते थे।
होगा याद सबको ?
गाँव के वह मंदिर और हर त्यौहार
खूब नाच-नाच कर मनाया करते थे ।
होगा याद सबको ?
बहुत बड़ा सा घर है गाँव मे ,
फिर क्यू आज छोटे से फ्लैट में ,
दर्द घुटनों का बयां करते हो ।
आज सुनसान पड़े है गांव, घर,
मोहल्ला, मंदिर,इमली बरगद के पेड़ निराले ..
क्यों उजड़ रहे गाँव हमारे ।
कितना सुखद सुहाना बचपन था हमारा।
मत भागो दूर अपने अस्तित्व से पीढ़ी दर पीढ़ी बीता हैं जहां जीवन हमारा ।
माना कि हर रोज नहीं रह सकते गाँव में,
कुछ समय बिताने आ जाया करो गाँव में सर्दी,गर्मी, बारिश ना सही शादी-ब्याह
बार-त्यौहार तो आया करो ।
हमारा जो जीवन शहरों की उन
वीरान गलियों में जहां नहीं है कोई
अपना,आओ कभी मेरे गाँव में जहाँ
प्रेम की बारिश है।
माँ-बाबा,काका,दादा का असीम स्नेह है ।
होगा याद सबको ?
जब माँ ले-लेकर बलेयाँ नजरें उतारती,बाबा घूम-घूम कर गाँव में
बच्चे मेरे आए हैं कहते हैं सबको ।
फिर से अपने बचपन को जीने,
कभी-कभी अपने गाँव जाया करो ।
छोड़कर शहरी जीवन थोडा ,
परिवार रिश्ते-नातों से जुड़ जाया करो, गाँव की मिट्टी से थोडी खुशबू लिया करो। कहती है मीनू दिल माँ
भारती का बस्ता है गाँवों में ।
अब एक बार हर बरस गाँव भी आया करो।
2) “दहलीज”
माँ मन करता है
तू बांहे फैलाये ,
और मे गले लग जाऊं,
थोड़ा सा,,,,,,,
रो कर मन को कर लूं हल्का ,
क्यों माँ अपनी दहलीज
से विदा किया ।
जो आज मन उदास है
तेरी यादों के भंवर में ,
जब से तेरी दहलीज पार की
मैं खो सी गई हूं,,,,
क्यू मां इतना प्यार दिया ,
जो नहीं जी पाती तेरे बिन,,,,
तेरी दहलीज पर रहती थी ,
दिन भर चहचहाती थी,,,,,
आज मे मायूस हो गई हूं ।
फिर माँ क्यों संसार के
नियमों में बांधा,,,,,।
क्यू माँ जब भी देखती हूं ।
तेरा चेहरा आंखों में,,,,
पानी भर आता ।
तेरी दहलीज पर
कितने ख्वाब सजाए ,
अच्छे बुरे का ज्ञान कराया ।
फिर क्यों माँ ,
किसी और की दहलीज
पर विदा किया ।।
तुझे यूं टूट कर चाहा
बेपनाह मोहब्बत की
मिसाल देते हैं ।
हर कोई मीनू और मम्मा को ,
एक दूसरे की जान बताते हैं।
माँ मेरे वश में हो जो,,,,,
तो तुझसे पल भर भी ना जाऊं दूर।
तेरे सारे बिखरे सपने कर दूं पूरे,,,,,
तू जो बीमारी में भी ,
हर पल मेरे साथ खड़ी थी।
पर माँ कैसी विडंबना है
समाज की,,,,,,
अपने जिगर के टुकड़े को
पल भर भी ना दूर किया ।
आज उसे यू थली-पूजन,
कराके विदा किया ।
भरकर आंखों में पानी ।
यूं ही नहीं हूँ ,
माँ की लाडली बिटिया
उनके रोम-रोम में बस गई हूं
जैसे मन मंदिर में रामलला है
वैसे माँ की आंखों में “मीनू “…
3) “देशभक्त”
पहन के खाकी वर्दी
लगा के सिर पर ,
भारत मां की टोपी,,,,
दुश्मन को मिलाने मिट्टी में
दिन-रात खड़े हैं फौजी ।
कैसे भूल जाऐ उन वीरों,,,
के बलिदान ये वीर
माँ भारती के फौजी ।
चहचहाती चिडियों के
कलरव से,,,,,
मैं भोर सवेरे किरणों को ,
नीत नऐ गीत सुनाती जाती हूँ,
भारत माँ के वीर सपूतों की
गाथा का वर्णन गाती जाती हूं
जब – जब जलियांवाला,,,,,
बाग याद आता है ।
देख के छल अपनें लोगों का ,
खूनी मजर घूम जाता है ।
देख भगत सिंह की छाती को ,
अंग्रेज फिरगी भाग गऐ ।
जब देखी चंद्र शेखर की गोली
अग्रेजी सत्ताऐ हिल गयी ।
सुलग गई वीरों के मन में,,,,,,
देशभक्ति के आंदोलन होली ।
फिर से आज भारत की गलियाँ
में सियासत की चाले चल गई ,
करके याद भगत सिंह,,,,
को सोचती हूँ ।
सीने पर गोली खाई तूने,,,,,
जब दुश्मन ही है अपने भाई
नित-नित बलिदान होते देश के
अट्ठारह अट्ठारह साल के फौजी
इसी उम्र में बलात्कार करके
वो नादान बन गए ,
देश के हर गली मोहल्ले में,,,,
ना मेरी बहनें ,सुरक्षित ना बेटियां
हर पल दुश्मन घात लगाए बैठे ।
ये ही तो है जो मेरी माँ भारती,,,,,
को बदनाम किए जाए ।
उनकी सत्ताधारी रंजिसो में,,,
पूरा परिवार मारा जाऐ ।
कहती हैं यह “मीनू “
वो सत्ता के लोभी ,
पी गए वो लहू,,,,,,
उन मासूम बेगुनाहों का,
करते हैं,,,,,,
अब देशद्रोह की साजिशे ,
जितनी चाहे कर लो,,,,,
साजिश नही झुका पायेगा ,
कोई मेरे हिन्दूस्तान को ।।
जय हिंद जय भारत
4)”वृद्धाआश्रम”
माँ लगती थी “वर्ल्ड बेस्ट “
पापा लगते थे ” हीरो “
जब हो गए सपने
तुम्हारे पूरे तो
आज तुम्हें वो बोझ लगते
जिसने तुम्हारी खातिर
सारा दुख था झेला,
आज माँ-बाप को वो
खुशिया नहीं दे पाते है,
जिस माँ ने खुद गीले
में सोकर तुम्हें सूखे में
सुलाया ।
पिता ने अपनी जरूरतें
त्याग कर तुम्हें खूब पढ़ाया
देख कर तुमको लाज आई
जब बन गऐ बड़े अफसर
यू एहसानों का बदला चुकाया
मां-बाप को वृद्धाआश्रम छोड़ आया
हर दुख-सुख, बीमारी में
साथ नहीं छोड़ा तेरा और
आज बुढ़ापे में
वृद्धा आश्रम छोड़ आया
नहीं मोड़ा, मुख कभी
हर फर्ज निभाया
तुझे नहीं छोड़ा कभी अकेला
आज अपने मां-बाप
को परायो के बीच छोड़ आया
रखना याद एक बात “मीनू” की
ऐक दिन फिर से ऐसा आएगा
समय का पहिया घूमेगा
फिर से तेरे जाये
इतिहास दोहराएंगे
जहाँ पहुँचाया है
आज तूने अपने माँ-बाप को,
कल को तेरी ओलादे भी ,
तुझे वही पहुँचायेगी,
फिर तुझे वो दिन याद आएगा
जब तेरे साथ कोई नहीं आएगा
तेरे माँ-बाप का सहारा ही
तुझे अपनायेगा।।
अब संभल जाना,
दे देना सम्मान उन्हें तुम
सारे फर्ज निभा कर ,
ना छोड़ना उन्हें वृद्धाआश्रम
भर देना खुशियों का दामन ।
मीनाक्षी राजपुरोहित “मीनू “
स्वरचित 🙏
5) “शून्य”
खड़ी शुन्य सी, डरी और सहमी सी
कब से सोच रही …..
कब कोई कृष्ण , लाज बचाने आएंगे । जब – जब हरण हुआ आबरू का,
तब सतयुग में कृष्ण आयें थे ।।
ज्यों – ज्यों बड़े यह कलयुग की,
दुनिया त्यों त्यों अपराध बढ़े ।।
पर अब कोई कृष्ण नहीं आते ।
नित -नित होते बलात्कार ,
मूंक शून्य भाव से ,
तकता जनमानस।।
कभी वो बनके भेड़िए ,
कुचल डाल ते ।
कभी जला कर ,
मार डालते ।।
अब भी कोई कानून के ,
रखवाले नहीं आते ।
अरे ! कभी दहेज में ,
कभी बेटे की चाह में ,
मार डालते ।
अब कलयुग में कौन,
कृष्ण आएंगे ।।
रावण भी सीमा रेखा में रहा था,
नहीं कभी छुआ सीता को था ।।
अब कलयुग की दुनिया में,
कौन कृष्ण आएंगे।
जनमानस की सोच बदल कर,
शुन्य भाव को ताक में रखकर।
तो बन जाओ कभी कृष्ण,
तो कभी राम ।।
हर नारी की इज्जत करना ,
धर्म अपना लो सब।।
फिर घर-घर कृष्ण आयेंगे ।।
मीनाक्षी राजपुरोहित “मीनू”🙏