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आज सृजक- सृजन विशेषांक में मिलिये भिलाई (छत्तीसगढ़) की साहित्यकार मोनिका रुसिया जी से। हमें आप सभी की समीक्षा की प्रतीक्षा रहेगी, अपनी प्रतिक्रिया कॉपी करके फेसबुक और वेबसाइट के लिंक पर भी जरुर डालें।
सभी मित्रों से निवेदन है कि आज पटल पर इन रचनाओं की समीक्षा के अतिरिक्त कोई भी क्रिया-प्रतिक्रिया या पोस्ट न डालें। पटल के सभी नियमों का पालन अनिवार्य रुप से करें।🙏🏼
निवेदक
संस्थापक
अन्तरा शब्दशक्ति संस्था एवं प्रकाशन
डॉ प्रीति समकित सुराना
परिचय
नाम –मोनिका रुसिया ।
पति का नाम –श्री पी सी रुसिया।
माँ का नाम –श्रीमती कुसुम गुप्ता।
पिता का नाम –श्रीमान लखन लाल गुप्ता।
शिक्षा एम ए (हिंदी साहित्य )बी .एड.।
कार्य– ईश्वर प्रदत्त सुंदरता को और भी मोहक बनाना (ब्यूटीशियन)
मूल पता –भिलाई छत्तीसगढ़।
आत्मकथ्य
पढ़ने का शौक बचपन से रहा है, इसलिए साहित्य में रुझान भी बढ़ा। मैं सदैव आभारी रहूंगी सौभाग्यवती अदिति की,जिन्होंने मुझे अंतरा शब्द शक्ति मंच में जोड़ा और अदिति व मंच के सभी आदरणीय सदस्यों ने लिखने के लिए प्रोत्साहित किया।पति और बेटे से भी सदैव संबल मिला।जब अच्छा सा पढ़ लिख लेती हूं तो ,बस ऐसा लगता है जैसे कि एक अच्छा सा प्रीतिभोज मिल गया ।आप सबका साथ पाकर जीवन में उत्साह आ गया है ।तो बस अब आप सभी गुणीजनों की संगत में मेरी लेखनी भी उत्साह पूरित होकर कुलांचे भरने के लिए तैयार है ।
उद्देश्य— मेरे लेखन का उद्देश्य है कि मन की गुत्थियों तक पहुँचकर, उन्हें सुलझाने का प्रयास करूँ।स्वयं औंर दूसरों के जीवन में भी हर्षोल्लास संचरित कर सकूँ।
रचनायें
1. वक्त
आज वक्त एक बिटिया के रूप में आया,
आप लिखा करो बुआ , बिटिया ने सुझाया ।
कैसे और क्या लिखूं मुझे समझ नहीं आता,
लेखनी मुस्काई, बोली ,वक्त ही सब सिखाता।
कहना मान बिटिया का ,बस तू मुझे ले हाथ में,
मैं ले चलूंगी तुझे बिठाकर, वक्त के पंख में।
आंखें घुमा, देख ,चारों ओर फैली है बहार,
बदलती है ऋतुयें, तू भी दिखा चमत्कार।
कुछ अपनी ,कुछ दूसरों की, सुन ,गुन, लिख,
मन पढ़,फिर गढ़ ,जाएगा सब दिख।
वक्त और कर्म दोनों की गति है न्यारी,
जिसने समझ लिया ,उसने अपनी विपदा टारी।
तो बस ,लेकर हरि नाम ,कर रही हूं वक्त की मनुहार,
वक्त को जिसने दिया मान उसकी होगी कभी न हार।
मैथिली शरण गुप्त जी को समर्पित
2. अर्जी
दद्दा, आप एक बार…..
आज सपने में ‘दद्दा’ जी दिखे थे
उनके सामने स्त्रियों का एक बड़ा हुजूम था।
सब एक सुर में कह रही थी…
‘दद्दा’ आप एक बार फिर से आ जाओ
हमारी भी व्यथा कथा को वाणी दे जाओ….
जैसे उर्मिला को कर गए अमर
ऐसी हमारी भी लीजिए खबर
अब नहीं होता सबर
आज के लखन जाकर वापस नहीं आते हैं
शूर्पणखा हो रही हैं सफल
‘दद्दा’, आप एक बार फिर से आ जाओ
हमारी भी व्यथा कथा को वाणी दे जाओ।
एक थी यशोधरा सुंदर नारी
जिन पर आपने अपनी लेखनी वारी
कह रही है आज की नारी
सुनिये, ये है अरज हमारी
हमें नहीं चाहिए ऐसा दिलबर
जो छोड़ कर चल दे आधे पथ पर
हमराही ,को भी ,समझा जाओ
‘दद्दा’, आप एक बार फिर से आ जाओ
हमारी भी व्यथा कथा को वाणी दे जाओ।
कैकयी की कलंक कथा को भी
आपने महिमा दिलवाई है।
कैकयी के मनस्ताप
को पहचान दिलवाई है।
आज भी ऐसी कई कैकेयी हैं
जो अपने किये पर पछताती हैं।
इन कैकयी की व्यथा कथा को भी वाणी दे जाओ
‘दद्दा’ आप एक बार फिर से आ जाओ।
दद्दा, आप एक बार फिर से आ जाओ।
3. माँ
यूं ही कहावतें नहीं निकली हैं
बड़ो के मुख से
“जीते तीनो लोक से
हारे अपनी कोख से”
निहार रही है आंखें मां की
पाने एक झलक तेरी
तू अपने में मगन है बबुआ
सभँल! आएगी बारी तेरी
बहुत थक जाता होगा
इसीलिए नहीं आ पाता होगा
माँ का मन करता है बचाव
बीवी बच्चों का भी तो
करना पड़ता है रखरखाव
धन्य है माँ, हर हाल में
रहती है जननी
कभी नहीं कहती कि
जैसी करनी ,वैसी भरनी
कहती है मेरे
पूर्व कर्मों की सजा है
वरना तो मेरा ‘जाया’
राजा बेटा है।
4. रोशनी की लकीर
चाहे कितना भी अंधेरा हो,
ना डरना बंदे ।
रख विश्वास मालिक पर,
काट देंगे अंधेरे फंदे ।
समझ ना आए जब,
दिखे ना कोई पथ तब ।
शरण में जा पुकार रब,
करेगा वो ऐसे करतब,
मिट जाएंगे दुख सब ।
तू मत हो उदास,
कर अरदास,
बुला अपने पास
पूरी करेगा आस ।
अंधेरे को चीर,
आएगी रोशनी की लकीर ।
तू राजा हो या फकीर,
तेरी हर लेगा वो पीर ,
है वो बेनजीर ।
5. कर्ण
दानवीर हूं मैं ,सबका है कहना,
मेरी नियति ही है बहाव में बहना।
पहले माँ ने टोकरी में सजाया,
बड़ी कृपा की, नदी में बहाया।
धन्य है माँ राधा,
जिन्होंने पाला सह सभी बाधा।
उनकी ममतामयी नदी में बहा मैं हमेशा,
कभी उथली ना हुई नदी ,गहरी रही हमेशा।
दुर्योधन से भी भरपूर प्रेम पाया,
भले स्वस्वार्थ की रही हो माया।
अपने लिए कुछ भी नहीं चाहा,
दूसरों को देने में ही मजा आया।
जब इंद्र ने मांगे कुंडल कवच,
तभी समझ गया था अपना सच।
भाई को बचाने के लिए दे दिया दान,
एक बार फिर नियति ने दिखाई अपनी शान।
माता कुंती को भी नहीं भेजा खाली हाथ,
किया वादा ,रहेंगे हमेशा, पांच पांडव आपके साथ।
नहीं बनना अब मुझे कभी कौन्तेय,
मुझे गर्व है मैं हूं राधेय।
दान में मैंने अपना दे दिया है सब कुछ,
पर माँ राधा , तेरा बेटा कहलाकर ही मुझे मिलता है सुख।
एक ही विनती है आपसे महर्षि व्यास,
लिखवायेगें जब आप श्री गणेश संग इतिहास,
लिखवाना,मैं राधेय ही रहूँ हमेशा,यही मेरी अरदास।
मोनिका, भिलाई, छत्तीसगढ़।