फेसबुक पेज का लिंक
https://www.facebook.com/253741051744637/posts/1191110241341042/
फेसबुक समूह का लिंक
https://www.facebook.com/groups/antraashabdshakti/permalink/3784593001589809/
आज सृजक- सृजन समीक्षा विशेषांक में मिलिये हरदा (मप्र) के रचनाकार जयकृष्ण चाँडक ‘जय’ जी से। हमें आप सभी की समीक्षा की प्रतीक्षा रहेगी, अपनी प्रतिक्रिया कॉपी करके फेसबुक और वेबसाइट के लिंक पर भी जरुर डालें।
सभी मित्रों से निवेदन है कि आज पटल पर इन रचनाओं की समीक्षा के अतिरिक्त कोई भी क्रिया-प्रतिक्रिया या पोस्ट न डालें। पटल के सभी नियमों का पालन अनिवार्य रुप से करें।🙏🏼
निवेदक
संस्थापक
अन्तरा शब्दशक्ति संस्था एवं प्रकाशन
डॉ प्रीति समकित सुराना
परिचय
नाम- जयकृष्ण चांडक “जय”
पिता- स्व. श्री गोवर्धनदास जी ‘चांडक’
माता- पुष्पादेवी चांडक
पता-“रमण विला” चांडक चौराहा हरदा,,,,,जिला हरदा , म. प्र.-पिन कोड 461331
व्यवसाय- कृषि उपकरण निर्माता एवं स्टील फेब्रीकेशन इंडस्ट्रीज
रुचियां- चित्रकला, मूर्तिकला, गायन, रांगोली, स्केच पेंटिंग एवं काव्य लेखन आदि।
आध्यात्मिक सेवाएँ – मंदिरों में भगवान के श्रंगार और झांकियां मिलाकर करीब 350 से उपर कलाकृतियों का निर्माण,,, महज़ शौकिया
प्रकाशन
पांच साझा ग़ज़ल संग्रह
खुश्बुऐ ग़ज़ल, हम परिंदों से प्यार करते हैं, साहित्य सुरभि, काव्य धारा प्रथम पुष्य, गुंजन, एक मुक्तक संग्रह– मकरंद
एकल ग़ज़ल संग्रह– मुझ से मुझ तक,
एक ग़ज़ल संग्रह प्रकाशाधीन,, प्रभाश्री पब्लिकेशंस बनारस से
पुरुस्कार,
भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के द्वारा विशेष प्रतिभा सम्मान २०१६,
हमकदम साहित्य प्रतिभा सम्मान” २०१७
श्री नर्मदा आह्वान सेवा समिति होशंगाबाद के द्वारा साहित्य श्री सम्मान
मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा 15 अगस्त पर विशेष सम्मान
अंतरा शब्द शक्ति सम्मान २०१८
श्री बजरंग व्यायामशाला इटारसी के द्वारा कवि श्री सम्मान
मातृभाषा उन्नयन संस्थान के द्वारा भाषा सारथी सम्मान
काव्य धारा कवि गोविंद साहित्य श्री सम्मान २०१९
उत्तम विचार मंच टिमरनी के
द्वारा उत्तम श्री सम्मान
हम सब संस्था जबलपुर के द्वारा विशिष्ट कवि सम्मान
कृषि उपज मंडी समिति के द्वारा कला दीप सम्मान
माहेश्वरी समाज के द्वारा समाज के गौरव पुंज विशेष सम्मान
प्रतिभा मंच दिल्ली के द्वारा नवोदित ग़ज़लकार सम्मान
हरदा कल्चरल सोसायटी के द्वारा हरदा का गौरव सम्मान
प्रभाश्री पब्लिकेशंस बनारस के द्वारा प्रभा श्री सम्मान
पद
अध्यक्ष- मध्य प्रदेश लेखक संघ, जिला इकाई हरदा
संरक्षक- राष्ट्रीय कवि संगम, जिला इकाई हरदा
उपाध्यक्ष-, तुलसी साहित्य अकादमी, जिला इकाई हरदा
सचिव- हिंदी साहित्य सम्मेलन जिला इकाई हरदा
जिला संयोजक- श्री नर्मदा आह्वान सेवा समिति होशंगाबाद
प्रभारी सांस्कृतिक प्रकोष्ठ- म. प्र. वैश्य महासम्मेलन, हरदा
अध्यक्ष- हरदा कल्चरल सोसायटी, हरदा
संचालक मंडल सदस्य- श्री माहेश्वरी सेवा न्यास
आत्मकथ्य- ये आज तक भी पता नहीं चल पाया कि,,,, एक विशुद्ध व्यापारी होने के बावजूद ये कलम कहां से हाथ में आ गई,,,, हमारी पिछली पांच पिढीयों में कलम से किसी का भी वास्ता नहीं रहा,,, पर जो भी थोड़ा बहुत लिखा,,, लोगों की सराहना मिली,,,, तो और लिखा,,, बस ,,,
भगवान की कृपा से,,, मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद, आगरा, इंदौर, उज्जैन, देवास, जबलपुर, होशंगाबाद पिपरिया आस्टा, सीहोर, भोपाल, रायपुर,,, और आसपास मिलाकर करीब 60 मंचों से विगत 3 सालों में काव्य पाठ कर चुका हूं,,, देश के बड़े कवियों और शायरों के साथ,,, जबकि अपनी शुरुआत में कभी ऐसा सपने में भी नहीं सोचा था मैंने,,, 🙏🏻😊
लेखन का उद्देश्य,,,, मात्र स्वंय की आत्मसंतुष्टि ,,,, चाहे थोड़ा लिखूं पर जो भी हो ठीक हो,,, किसी की भावनाओं को ठेस ना पहुंचे,,, और खुद को भी अच्छा लगे,,,, सुख में भी लिखता हूं और कभी दुखी होकर भी लिखता हूं,,,, मूल रुप से ग़ज़ल और मुक्तक लिखने की कोशिश कर रहा हूं,,,, मां सरस्वती की कृपा मानकर,,,,,!
1) ग़ज़ल ,,,,,,,
दिन की है कभी और है कभी रात की चिंता,
इस बात को छोड़ा तो है उस बात की चिंता
ठंड से ठिठुर रहे हैं शेष गर्मियां भी हैं,
फिर भी तो लोग कर रहे बरसात की चिंता
ख़ुद में ही मगन हैं सभी, हैं भावशून्य भी,
किसको है? किसी के यहांँ जज़्बात की चिंता
लिखना है ग़ज़ल और उन्हें पढ़ना है मंच पर,
शायरी नहीं हैं और न ख़्यालात की चिंता
बीते को छोड़ हो शुरू आगे का सिलसिला,
मत कीजिए गुज़रे हुए लम्हात की चिंता
अपने कहांँ अपने रहे मतलब का दौर ‘जय’,
सबको है अपने आप के हालात की चिंता
2) गज़ल
2122 1212 22/ 112
बात दिल की कभी कही ही नहीं,
जंग खुद से कभी लड़ी ही नहीं।
आँख रक्खी है खोलकर तो क्या,
रूह तो नींद से जगी ही नहीं।
ढूँढना चाही लाख पर हमको,
आदमीयत कहीं मिली ही नहीं।
वो वहाँ रोज़ याद करते हैं,
एक हिचकी यहाँ चली ही नहीं।
बेसबब ढो रहे हैं, सब साँसें,
ज़िंदगी, ज़िंदगी रही ही नहीं।
ख़ुद कहा ‘जय’ ने मार दे मुझको,
मौत आगे मगर बढ़ी ही नहीं।
3) गज़ल
22 22 22 22 22 22
गीत ख़ुशी का फिर से गाया जा सकता है,
हंसते- हंसते वक्त बिताया जा सकता है।
है दुश्मन मेरा पर आज परेशां वो,
घर उसके इक बार तो जाया जा सकता है।
कुछ बेहतर करने का मन में गर ठाने,
पतझड़ में भी फूल खिलाया जा सकता है।
ठीक निशाने लग जाएगा सोंचके बस,
अंधेरे में तीर चलाया जा सकता है।
आपने क़त्ल का हम पर ही अब देखो यारों,
झूठा फिर इल्ज़ाम लगाया जा सकता है।
‘जय’ चाहे कुछ भी समझे खुद को लेकिन,
सच को कितना और छिपाया जा सकता है।
4) गज़ल
- 122 122 122
निगाहों से अपनी गिराने लगे हैं,
मुझे हर घड़ी आजमाने लगें हैं।
कभी थे जो हमराह, हमराज़ मेरे,
हक़ीक़त हमीं से छिपाने लगे हैं।
लगता है, बढ़ने लगी मेरी शोहरत,
ये इल्ज़ाम जो सर पे आने लगें हैं।
उगने में सूरज के जब देर देखी,
ये जुगनू भी आँखें दिखाने लगे हैं।
बचाकर के मझधार से लाने वाले,
किनारे पे कश्ती डुबाने लगे हैं।
कभी तो वो खुद था ज़माने के पीछे,
अभी ‘जय’ के पीछे ज़माने लगे हैं।
5) हमारे हालात पर ग़ज़ल ,,,,,
कुछ ज़मीं, कुछ आस्मांँ दोनों तरफ़,
बंट गया है ये जहांँ दोनों तरफ़।
झूठ, सच दोनों से अपना राब्ता,
फंस गई है ये ज़ुबाँ दोनों तरफ़।
मौत का पर्चा दिखाकर ज़िंदगी,
ले रही है इम्तेहाँ दोनों तरफ़।
राख के हैं ढ़ेर, जलती बस्तियाँ,
रह गया है बस धुआंँ दोनों तरफ़।
भागती राहें सभी खामोश हैं,
अब नहीं है कारवांँ दोनों तरफ़।
जान है और इक तरफ़ हैं रोटियां,
‘जय’ यही मजबूरियां दोनों तरफ़।
6) एक ताज़ा ग़ज़ल,,,,,,,,,,,,
बहर – 212 212 212
मेरे दिल की सदा मेरा घर,
दूर ग़म से बसा मेरा घर।
सबके घर आस्मां छू रहे,
पर ज़मीं पे रहा मेरा घर।
हूबहू तुमको दिख जाऊंगा,
है मेरा आइना, मेरा घर।
दौलतों से न तौलो इसे,
मेरी मां की दुआ मेरा घर।
बद्नज़र, बद्दुआओं से है,
आज भी अनछुआ मेरा घर।
‘जय’ तेरे घर से छोटा सही,
तेरे दिल से बड़ा मेरा घर।
जयकृष्ण चाँडक 'जय'
हरदा म प्र