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आज सृजक- सृजन समीक्षा विशेषांक में मिलिये मण्डला (म.प्र.) की रचनाकार अर्चना जैन जी से। हमें आप सभी की समीक्षा की प्रतीक्षा रहेगी, अपनी प्रतिक्रिया कॉपी करके फेसबुक और वेबसाइट के लिंक पर भी जरुर डालें।
सभी मित्रों से निवेदन है कि आज पटल पर इन रचनाओं की समीक्षा के अतिरिक्त कोई भी क्रिया-प्रतिक्रिया या पोस्ट न डालें। पटल के सभी नियमों का पालन अनिवार्य रुप से करें।🙏🏼
निवेदक
संस्थापक
अन्तरा शब्दशक्ति संस्था एवं प्रकाशन
डॉ प्रीति समकित सुराना
परिचय
नाम -श्रीमती अर्चना जैन
पति -श्री अनिल जी जैन
पिता-श्री राजकुमार जैन
माता -श्रीमती मालती जैन
शिक्षा-स्नातकोत्तर मास्टर ऑफ सोशल वर्क
कार्य क्षेत्र/दायित्व
1-पूर्व ज्यूरी मेंबर किशोर न्याय बोर्ड
2-पूर्व सदस्य-समाज कल्याण बोर्ड म. प्र. शासन
3 सचिव -नारी विकास समिति मण्डला
4-जिला अध्यक्ष -शहर समता मंच प्रयागराज
5 कार्यकारी अध्यक्ष- जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन
6-सचिव-हिंदी लेखिका संघ मध्यप्रदेश
7-अध्यक्ष-प्रेरणा संघ
सम्मान-
1-वर्तिका जबलपुर से “नारी गौरव सम्मान”
2″महिला गौरव सम्मान “
व्होलसम देवोलोपमेन्ट सोसाइटी भोपाल
3 “अंतरराष्ट्रीय नारी शक्ति सम्मान” भोपाल
4 अखिल भारतीय साहित्य परिषद “महाकौशल विभूति”सम्मान
5 “अग्रणी महिला सम्मान”
मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार परिषद
6- “विद्यासागर साहित्य रत्न सम्मान” जयपुर
7-मंथन “काव्य पीयूष अलंकरण”
8-“कलम वीर सम्मान2020″अखिल भारतीय साहित्य परिषद
9-“साहित्य सेवी सम्मान” प्रथम स्थान फेसबुक पर अंतरा शब्द शक्ति
10-“दिनकर साहित्य सम्मान” हिंदी लेखिका संघ मध्यप्रदेश
11-“सृजक साधक अलंकरण”प्रथम पुरस्कार
मंथन जबलपुर
12-“शब्द रंग सम्मान”जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन
13-“सहभागिता सृजन सम्मान”साहित्यिक मित्र मंडल जबलपुर
14-“पर्यावरण प्रेमी सम्मान”
साहित्यिक मित्र मंडल जबलपुर
15 सहभागिता के अनेकों पुरस्कार
प्रकाशन-
पुस्तक
1″दिल पर दस्तक”-अर्चना जैन
2-“भारत के श्रेष्ठ रचनाकार ” साझा संकलन
3 “कोरोना की आपबीती” साझा संकलन
4 “कोरोना काल और शिक्षा” साझा संकलन
5 “आर्ट जीरो” में अतिथि साक्षात्कार के रूप में स्थान
6 “अग्रिमा” साझा संकलन
संपादन
1 “अग्रिमा ” नारी विकास समिति मण्डला की रजत जयंती स्मारिका एवम काव्य संग्रह
आत्मकथ्य
समाज मे भ्रष्टाचार, अन्याय, स्वार्थलिप्सा और अन्य विद्रूपताएं मुझे सदैव उद्वेलित करती रही हैं। मैं सदैव एक आदर्श समाज की कल्पना करती हूं। होश सम्हालते ही समसामयिक लेख लिखना प्रारम्भ कर दिया था और विद्यार्थी जीवन से ही समाचार पत्रों में स्थान मिलना प्रारम्भ हो गया था। परंतु ज्यादा लेखन नहीं करती थी। 2008 में मेरे साथ एक बहुत बड़ा अन्याय हुआ मुझे एक झूठे आरोप में फंसाया गया और एट्रोसिटी एक्ट लगाकर 5 दिन हिरासत में रखा गया। तब मेरे अंदर संविधान की इन धाराओं के दुरुपयोग और सामाजिक विषमताओं के प्रति लेखन की तीव्र उत्कंठा हुई। मेरा आक्रोश कविताओं के माध्यम से बाहर आया।इसी दौरान एक नन्ही सी बेटी के साथ हुए बलात्कार के न्याय के लिये एक असहाय पिता को मैंने दर दर की ठोकरें खाते देखा जिस दिन ये घटना मेरे सामने आई मैं रात भर सोई नहीं और एक रचना ने जन्म लिया ” भ्रूण हत्या” ऐसे लेखन कार्य से मुझे बहुत सुकून मिलता था फिर मैं लिखती गई। मेरी एक पुस्तक का प्रकाशन हुआ”दिल पर दस्तक”
धीरे से अंतरा समूह से जुड़ी
प्रीति सुराना जी के अदम्य इच्छा शक्ति , कीर्ति वर्मा जी और पिंकी परुथी जी के सक्रियता को प्रणाम करती हूं। साहित्य के प्रति इनकी पूरी टीम का समर्पण स्तुत्य है। कला पारखियों का1 और बड़ो का मार्गदर्शन मिलता गया और मेरा लेखन गति पकड़ता गया।
लीक से हट के लिखने की कोशिश करती हूं।आदर्श समाज स्थापना के दृष्टिकोण से लिखती हूँ। माँ वीणा पानी जब आशीर्वाद देती हैं तो कुछ अच्छा सृजन हो जाता है वरना मैं क्या मेरी हैसियत क्या। आप सबके स्नेह और समीक्षा की अधिकारी बनूँ बस यही प्रार्थना है।
1) भारतीय संस्कृति
प्रीत
भारत की प्रिय रीत
संस्कृति की सच्ची मीत
सारा गांव
भैया, भौजाई
चाची और ताई
चाचा और ताऊ
बाबा और दाऊ
के सुरों से गूंजता…..
पर रात ढले
अंधेरो के तले
ठर्रे के नशे में चूर
अपनी औरतों को पीटता
संस्कृति को घसीटता
वह रोती ,सुबकती….
पर सूर्य की
नई किरणों संग
पति ही परमेश्वर की
आरती उतारती
भारतीय संस्कृति
धर्म
भारत का मर्म
संस्कृति का उद्गम
सारा समाज
पूजा और प्रार्थना
भक्ति आराधना
दक्षिणा और दान
मांगे वरदान
पूर्ण करो काज प्रभु
नंगे पांव आऊँ
सवा मन लड्डुओं
का भोग मैं लगाऊं…
धीरे से वो प्रभु
कब अफसर हो गया
लड्डुओं का भोग कब
रिश्वत में बदल गया
बन चुका व्यवहार वो
संस्कृति का सार वो
माँ
गंगा
गंगोत्री से निकली
सूर्य किरण सम उजली
हरिद्वार में देख छवि
इठलाता प्रातः रवि
पूजते जिसे हैं हम
मानते पवित्रतम
पाप जो धोती सदा
पापियों का सर्वदा….
पर हम
निर्माल्य उसमे डाल रहे
मरे हुओं को बहा रहे
अपशिष्ट और पीक थूक
घिनौने और काले कीट
कैसी हमारी यह कृति
भारतीय संस्कृति
गर्व
मुझे भी
भारतीय
संस्कृति पर….
पर
हैं यहाँ भी
कुछ कृति
जो
” सँ “नहीं है
“कु”कृति
आइये शपथ ये लें
कु कृति को छोड़ दें
फिर कहें कि
गर्व कर
भारतीय
संस्कृति पर
2) कृतघ्न
कुत्ते को गर रोटी डालो,
स्वामी भक्त वो बन जाता.
सुबह शाम गर चारा डालो’
दूध पिलाती गौ माता.
गिरेबान में झांक तू अपने’
रे आदम क्या मानुष तू.
किसके प्रति कृतज्ञ हुआ है,
किसको धोखा देता तू.
लहू को अपने दूध बनाया’
कोख में जिसने पाला था.
स्वारथ के बस होकर पगले,
उसको आंसू देता तू.
(माँ)
खून पसीना एक किया था,
घोड़ा बन बहलाता था.
जरा झुके जो उसके काँधे,
आँखे उसे दिखाता तू.
(पिता)
जिस मिट्टी में जन्मा था तू,
खाया, खेला बड़ा हुआ. खनकाने को कुछ सिक्के,
परदेशी बन भागा तू.
(जन्मभूमि)
यार दोस्त सुख दुःख में तेरे,
जान न्योछावर करते थे.
ऑफिसर बन कर जब आया,
उनको न पहचाने तू.
(बाल सखा)
ऊपर वाले की देहरी पर,
जाकर रोया करता था.
पैसे चार क्या जेब में आये,
दानवीर बन बैठा तू.
(ईश्वर)
किसके लिए कृतज्ञ हुआ है,
किसका क़र्ज़ उतार सका.
रे आदम गर मानुष है तो,
कभी कृतघ्न न होना तू.
3) हाथों में हाथ
हाथ तेरे देती हूं हाथ
जीवन भर थाम सकोगे न
हाथ दिया और दूंगी साथ
संग संग कदम धरोगे न
हाथ नहीं ये सिर्फ मेरा
मेरे पापा का मान पिया
साथ नहीं ये सिर्फ मेरा
मेरे कुल का बलिदान पिया
सुख दुख तेरा, मेरा होगा
मेरी मुस्कान बनोगे न
हाथ दिया और दूंगी साथ
संग मेरे कदम धरोगे न
तन भी अर्पण, मन भी अर्पण
हंसी रुदन सब हुई तेरी
जीवन तुझको अर्पण मेरा
न दूजी राह कोई मेरी
तेरे सपने मैं पूर्ण करूँ
इतनी सी दखल सहोगे न
हाथ दिया और दूंगी साथ
मेरे संग कदम धरोगे न…..
साथ तेरे देहरी लांगू
लेकर मन मे अरमान पिया
जड़ छोड़ तुम्हारे साथ चली
आंगन में रोपना मुझे पिया
फिर प्यार भरा सिंचन करके
नव जीवन मुझको दोगे न
हाथ दिया और दूंगी साथ
मेरे संग कदम धरोगे न
4) विषबेली
मक्खनबाजी, रिश्वतखोरी
झूठ-फरेब औ अवसर वाद
जातिवाद और वंशवाद की
विषबेली में डलती खाद
हिन्दू ,मुस्लिम,सिख, ईसाई
का अब रहा न यहाँ विवाद
वोटों की तलवार दोधारी
हिन्दू कट गए जातों-जात
सैंतालिस के पहले दुश्मन
नज़र फिरंगी था आता
आज का दुश्मन दफ्तर दफ्तर
मंचो पर है इतराता
लगा लगा पॉलिश जनता को
बलि बूथों पर ले जाता
आज़ादी के दीवानों की
कुर्बानी का फल खाता
उठो जवानों धरा माँगती
फिर से जोश जवानी का
बेच न दे कोई देश तुम्हारा
नोंच लो मुँह बेईमानी का
मत छोड़ो मैदान को खाली
जिसमें घुसता कुटिल दिमाग
देश प्रेम की अलख जगा दो
जाग उठे सोया ये समाज
चुन -चुन उनका घात करो
जिसने डाली है मुख पे नकाब
तुम्हें कसम है मातृभूमि की
निष्क्रियता का कर दो त्याग
मक्खनबाजी, रिश्वतखोरी
झूठ फरेब औ अवसरवाद
जातिवाद और वंशवाद की
विषबेली में डलती खाद
5) गाँधी ने कहा था
गाँधी ने कहा था—
पाप से घृणा करो
पापी से नहीं
पाप को तज दो
पापी को नहीं
हमने उनका दर्शन
मान लिया
पाप को तजा न तजा
पापी को गले लगा लिया
गले ही नहीं लगाया,
मंचो पर चढ़ाया,
हार पहनाया
सम्मान किया,
किसी ने भ्रष्टाचार किया
चरित्र हीनता किसी ने की
किसी ने देश द्रोह किया
तो बेईमानी किसी ने की
पर
हमने इनके पापों से
आंखों को फेर लिया
गांधी के दर्शन में भी
थोड़ा उलट फेर किया
जो जितना गिरता गया
उसको उतना मान दिया
गांधी के दर्शन को हमने
आधा तो अपना ही लिया
पाप को छोड़ा न छोड़ा
पापी को गले लगा लिया
क्या हुआ
जो सड़कें टूट रहीं
नेताओं की अट्टालिकाएँ तो खड़ी हैं
क्या हुआ
जो गांवों में बिजली नहीं
कर्णधारों के महलों में
रोशनी की लड़ी है
क्या हुआ
जो माननीयों का चरित्र गिरा
चरित्रहीनों के पुजारी बड़े हैं
क्या हुआ
जो ईमान बिक गया
बेईमानों के भक्त बड़े हैं
क्या हुआ
जो देश बेचा जा रहा
देश द्रोहियों के अफसाने बड़े हैं
क्या हुआ
जो देश बंट रहा
जात पात में वोटर बटे हैं
क्या हुआ
जो देश का कर्ज बढ़ रहा
मुफ्तखोर झोली फैलाए खड़े हैं…..
पूछती है अर्चना
ये सवाल
है कोई माई का लाल
जो गाँधी के सिद्धांत को
आज के सांचे में सके ढाल
जो पाप को ही नहीं
पापी को भी सके समूल निकाल
क्यों पड़ गया आज
ऐसे नेताओं का अकाल
अरे स्वार्थी वोटर
अब तो इन पापियों को दे काल
अब तो इन पापियों को दे काल।
अर्चना जैन