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आज सृजक- सृजन समीक्षा विशेषांक में मिलिये निकिता अग्रवाल, रायपुर जी से। हमें आप सभी की समीक्षा की प्रतीक्षा रहेगी, अपनी प्रतिक्रिया कॉपी करके फेसबुक और वेबसाइट के लिंक पर भी जरुर डालें।
सभी मित्रों से निवेदन है कि आज पटल पर इन रचनाओं की समीक्षा के अतिरिक्त कोई भी क्रिया-प्रतिक्रिया या पोस्ट न डालें। पटल के सभी नियमों का पालन अनिवार्य रुप से करें।🙏🏼
निवेदक
संस्थापक
अन्तरा शब्दशक्ति संस्था एवं प्रकाशन
डॉ प्रीति समकित सुराना
उपाध्यक्ष
अन्तरा शब्दशक्ति संस्था
पिंकी परुथी अनामिका
परिचय
नाम – निकिता अग्रवाल
पति – श्री कमल अग्रवाल, रायपुर
पिता – श्री नरेश अग्रवाल (लाँजी मध्यप्रदेश )
शिक्षा – बीएससी in biochemestry
आत्मकथ्य
पढ़ने का शौक बचपन से ही था, अपने छोटे से स्कूल में भाषण, गीत, नृत्य, एंकरिंग सभी में बढ़ – चढ़कर हिस्सा लेती थी, और एक बिज़नेस मारवाड़ी परिवार से थी तो बीएससी करते ही तुरंत एक बिज़नेस परिवार में भिलाई में शादी हो गयी, बस फिर अपनी घर – ग्रहस्थी में रम गयी । मेरे तीन बच्चे है 2बेटियां और एक बेटा ।
पढ़ने का बहुत शौक था तो अपने पतिदेव से हर टॉपिक पे डिस्कशन होता था, फिर हम रायपुर शिफ्ट हो गए, यहाँ से मेरे जीवन की दूसरी पारी चालू हुई,
यहाँ मैं अपनी सोसाइटी की सेक्रेटरी बनी और बोलने के लिए कुछ लाइन्स लिखना चालू किया, जैसे सभी को टाइटल्स देना, आमंत्रण के लिए कुछ, फिर सर्वप्रथम नवरात्री के प्रोग्राम के लिए मैने एक कविता लिखी जो सभी को बहुत पसंद आई, उसके बाद अपने विचारों को शब्द रूप देने लगी और लोगों के लाइक्स मुझे मिलने लगे और मेरा मनोबल बढ़ता गया ।
जब मैने फेसबुक में अपनी 2-3 कविता पोस्ट की तब मेरी सखी शुचि जैन ने जो प्रीति जी की देवरानी है मुझे अंतरा परिवार में शामिल करवाया ।
उसके लिए मैं शुचि और प्रीति जी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ की उन दोनों की वजह से मेरे ठहरे हुए जीवन को एक राह मिल गयी,
और मैं,अंतरा परिवार के सभी मेरे आदरणीय रचनाकारों को भी दिल से धन्यवाद देती हूँ की हर दिन आप लोगों से कुछ नया सीखने को मिलता है।
रचनाएँ
1 अब तो सामने आ
तू है बाला , तू है नारी,
तुझको अनुपम रूप मिला,
ईश्वर ने तुझे दी है शक्ति,
तू भी है सृष्टि की जननी
अपने को ना कम समझ
अब तो अभिमान ला”””
टटोल खुद में, कुछ तो है तुझ में अब तो सामने आ
तुझमें रूप है नवदुर्गा का
कुछ तो साहस दिखा,
नवदुर्गा जैसा कुछ तो कर
अपने आप को सिद्ध तो कर
अपने डर पे काबू पा,
टटोल खुद में,कुछ तो है तुझ में अब तो सामने आ
हास परिहास और वाद-विवाद यह तो पहलू है जीवन का,
ना इसको, पूरा जीवन बना,
कुछ तो अपना ज्ञान दिखा
टटोल खुद में,कुछ तो है तुझ में अब तो सामने आ
क्यों ! जश्न मनाए नारी शक्ति का,
जब ज्ञान से नाता तोड़ चुकी है,
कुछ भी करने से पहले,
जब तू हिम्मत हार चुकी है,
पूरी सृष्टि जश्न मनाएगी
जब तू ज्ञान की गंगा बहाएगी”””’ टटोल खुद में कुछ तो है तुझ में अब तो सामने आ””””
2 खुशी, उत्साह , हर्ष
किसको, किस बात की हो खुशी,
किस बात में हो हर्ष,
निर्भर है,दिल के जज़्बात पर
वो नन्ही परी ख़ुशी से चहकी,
जब हाथ में बैठी उसके तितली,
खाना पीना भूल गयी, उत्साह से उसके पीछे दौड़ी
वो नन्ही परी खुशी से चहकी,
जब हाथ आई उसके रोटी,
उत्साह से निवाला गटकने लगी
दो दिन से वो थी भूखी,
वो नन्ही परी खुशी से चहकी, जब हाथ आई उसके पुस्तिका
उत्साह से पन्ने पलटने लगी,
पढ़ने की थी उसकी बड़ी इच्छा,
वो नन्ही परी खुशी से चहकी,
जब उसको मिली उसकी माँ
यतीमखाने में उत्साह से दौड़ी,
कि अब उसके पास भी है माँ
होता है अभाव किसी ना किसी बात का,
और कहाँ थमती है इंसा की लालसा,
खुशी तो है क्षणभंगुर ,
एक से मिलती है तो तुरंत
दूसरे कि अभिलाषा ।।
3 प्रतिशोध/ बदला
स्वतंत्र भारत के नए दौर में, परतंत्रता की सुनी कहानी है। अनेकों शहीदों ने दी कुर्बानी,
तब हुई जिंदगी सुहानी है ।
सुनो,सुनाऊं – एक कहानी,
एक शहीद के “प्रतिशोध” की
धैर्य संयम और विश्वास से, निरंतर कोशिश की,
अमृतसर के बाग में “बैसाखी “की शाम थी,
“रोलेट एक्ट “के विरोध में एक सभा आम थी,
बच्चे बूढ़े और जवां थे, प्रिय नेता को सुनने जमा थे,
सहसा मानवता स्तब्ध रह गई! अंधाधुन प्रहारों से,
कहां को भागे, कैसे भागे! “अंधकूप “में जा कूदे,
ले ली हजारों मासूमों की जानें, “ब्रिटिश जनरल -“ओ डायर” ने,
पूरे भारत को दहला दिया, इस भीषण हत्याकांड ने,
एक नवयुवक “उधम सिंह “था, जो बच गया था इन सब में, धमनियों में खून खोल रहा था, “प्रतिशोध” की ज्वाला में,
बाग़ की मिट्टी हाथ में लेकर,
खाई कसम दिल ही दिल में,
नहीं छोड़ूगा,उस शख्स को,
जो शामिल है, इस हत्याकांड में,
क्या -क्या नहीं जतन किये!
मायकल डायर तक पहुंचने में,
सालों अपनी सुध भूल गए
प्रतिकार की धधकती आग में,
21 साल के कठिन तप से,
लाया एक पल ऐसा जीवन में, सामने से वार किया,
ओ डायर के सीने में,
हँस – हँस झूल गया वो फांसी, संतोष भरा था यह मन में, “प्रतिशोध” मैंने ले लिया,
जो प्रण किया था जीवन में,
जो प्रण किया था जीवन में।।
अनेकों शहीदों ने तो दी कुर्बानी ,
देश को स्वतंत्र कराने में,
अब हमारी है बारी,
देश को आगे बढ़ाने में
देश को आगे बढ़ाने में ।।
4 कभी सोचा है
स्त्रियों ने हर युग में साबित किया है खुद को,
जीवन की हर बात में टक्कर दिया है पुरुष को,
फिर क्यों!भारत देश में लक्ष्मण रेखा से बंधी है स्त्री,
यदि सीता के हाथ में भी तलवार होती,
तो क्या फिर रामायण होती, कभी सोचा है
कहते हैं आदम और हव्वा से बनी है यह सृष्टि,
साथ आए,साथ चले, निभाते जिम्मेदारी पूरी- पूरी
दुनिया के बनते -बनते क्यों पीछे रह गई स्त्री,
शायद साथ चलते तो दुनिया और हसीं होती, कभी सोचा है
घर संभालेगी स्त्री और कमा कर लाएगा पुरुष,
नाजुक बहुत है स्त्री और बाहर की दुनिया कुरूप,
वो नाजुक स्त्री, बच्चे को पैदा करने का दर्द सहती है, कैसे, अपने छोटे बच्चों का 24घंटे पालन करती है कैसे
स्त्री को नाजुक और बाहरी दुनिया को कुरूप बताने का प्रपंच रचा है किसने,
कभी सोचा है
स्त्री में होती है जन्म देने की ईश्वरी शक्ति,
घर में रहती,बच्चों की वह परवरिश करती,
चरित्रवान रहकर पूरे समाज की नींव है वह बनती,
यदि वह छोड़ दे अपनी मर्यादा, तो हिल जाएगा पूरे समाज का
ढांचा, कभी सोचा है
बहुत सयाने होंगे वह लोग, जिन्होंने समझे होंगे स्त्री का महत्व,
यदि पुरुषों जैसी हो गई स्त्री,
तो ना घर होगा ना समाज, इसीलिए तो घर -घर में है रामायण कि,
पार करोगी लक्ष्मण रेखा,
तो देनी होगी अग्नि परीक्षा, उसके बाद भी समाना होगा तुम्हें धरती पर,
क्या सच में राम थे! या स्त्री को डराने के लिए घर -घर में है रामायण कभी सोचा है
‘5 चन्दन ‘
“””””””””””””””””
प्रभु जी मुझे चंदन सा तुम बनाना,
चाहे मुझको रूप ना देना, चंदन सा गुण देना,
संगत में मेरी जो भी आए,
मुझको बदल ना पाए,
मुझसे कितना द्वेष हो तब भी
खुशबू में मेरी, बह जाए
प्रभु जी मुझे चंदन सा तुम”””
मेहनतकश इंसान बनाना,
गुण मेरे भी महके,
जिसके भी मैं पास रहूं वह श्रद्धा से मुझे देखें,
विशाल बनूँ या रहूं मैं छोटा,
मुझ में फर्क ना आए,
हर रूप में मेरा हुनर हो ऐसा कि काम आऊं मैं सबके,
प्रभुजी मुझे चंदन सा तुम”””
कष्ट हो चाहे मुझको कितना,
मैं शीतलता ना छोड़ू,,
चाहे मुझको उछिन्न ही कर दो मैं धर्म अपना ना छोड़ू ,
तकदीर मेरी ऐसी बनाना कि तुम मस्तक में धारो,
चरणों में अपने, जगह देकर
जीवन मेरा तारो।
प्रभुजी मुझे चन्दन सा तुम बनाना
निकिता अग्रवाल