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आज सृजक- सृजन समीक्षा विशेषांक में मिलिये अमित तिवारी “शून्य” ग्वालियर (म. प्र.) जी से। हमें आप सभी की समीक्षा की प्रतीक्षा रहेगी, अपनी प्रतिक्रिया कॉपी करके फेसबुक और वेबसाइट के लिंक पर भी जरुर डालें।
सभी मित्रों से निवेदन है कि आज पटल पर इन रचनाओं की समीक्षा के अतिरिक्त कोई भी क्रिया-प्रतिक्रिया या पोस्ट न डालें। पटल के सभी नियमों का पालन अनिवार्य रुप से करें।🙏🏼
निवेदक
संस्थापक
अन्तरा शब्दशक्ति संस्था एवं प्रकाशन
डॉ प्रीति समकित सुराना
उपाध्यक्ष
अन्तरा शब्दशक्ति संस्था
पिंकी परुथी अनामिका
परिचय
नाम: अमित तिवारी
पिता: श्री जगदीश प्रसाद तिवारी
साहित्यिक उपनाम: ‘शून्य’ (उपसर्ग)
शिक्षा: एमबीए टूरिज्म एडमिनिस्ट्रेशन ,डिप्लोमा इन फ्रेंच ,पीएचडी- पर्यटन (प्रक्रम)
सहायक प्राध्यापक -पर्यटन प्रबंधन अध्ययन
भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान
(केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त संगठ)न
अतिरिक्त प्रभार: केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी ; भा. प. या. प्र. स.
पता: बी -4 गालव नगर ग्वालियर मध्य प्रदेश
प्रकाशन
•इंक्रेडिबल इंडिया टूर फैसिलिटेटर कार्यक्रम पर्यटन मंत्रालय बेसिक कोर्स कंटेंट विशेष अतिथि के तौर पर हिंदी अनुवाद का का कार्य
•इंक्रेडिबल इंडिया टूर फैसिलिटेटर कार्यक्रम पर्यटन मंत्रालय एडवांस हेरिटेज को डेवलपमेंट
•नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति ग्वालियर के लिए केंद्रीय ऐ . जी .ऑफिस, ग्वालियर द्वारा प्रकाशित पत्रिका प्रयास में मौलिक रचनाओं का प्रकाशन|
•केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय नई दिल्ली के हिंदी की त्रैमासिक पत्रिका “अतुल्य भारत” के विशेषांक में स्वरचित रचना “जीवन का कुरुक्षेत्र” का प्रकाशन जुलाई से सितंबर 2015 |
•विभिन्न प्रकाशन मंचों जैसे स्वदेश, नईदुनिया, श्रीराम एक्सप्रेस, दैनिक भास्कर, सुदर्शन एक्सप्रेस आदि समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में समयांतर में लेखों, विचारों एवं गतिविधियों आदि का प्रकाशन।
•विभिन्न पर्यटन आधारित पुस्तकों में विभिन्न अध्यायों का एक विषय विशेषज्ञ के तौर पर लेखन अब तक 09 का प्रकाशन
•भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान ग्वालियर के केंद्र से प्रसारित दैनिक समाचार पत्र पर दैनिक पर्यटन समाचार पत्र के संपादन का कार्य 2020 अगस्त से निरंतर
•ज्ञानधारा नॉलेज फॉर आल चैनल से नित नवीन रचनात्मक विषयों की प्रस्तुति : मुख्यतः आध्यात्मिक, ज्ञानात्मक एवं मनोबल विषयक |
सम्मान एवं पुरस्कार
•तुलसी पंचशती पर आयोजित श्री रामचरितमानस आधारित चौपाई अंताक्षरी व भावार्थ प्रतियोगिता में डबरा तहसील में प्रथम स्थान; वर्ष 1998 एस डी एम् डबरा द्वारा सम्मानित |
•नागरिक सम्मान ग्वालियर गौरव पर्यटन रत्न सम्मान द्वारा; ग्वालियर विकास समिति ग्वालियर मध्य प्रदेश 15 अगस्त 2018; शालेय शिक्षा मंत्री श्री जयभान सिंह पवैया द्वारा सम्मान |
•एमिटी विश्वविद्यालय मध्य प्रदेश द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी इमर्जिंग ग्लोबल पर्सपेक्टिव टुवर्ड्स बिजनेस लीडरशिप पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में सर्वश्रेष्ठ पेपर प्रेजेंटेशन अवार्ड 16 अक्टूबर 2015 |
•हिंदी राजभाषा लेखन विधा कार्यक्रमों में भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान ग्वालियर की राजभाषा समिति आयोजन वर्ष 2011, 12, 13, 14 व 2015 में प्रथम व 2016, 17, 18 व 19 में द्वितीय ,तृतीय पुरस्कार
आत्मकथ्य
जीवन पथ पर सामान्य परिवार के एक संघर्षशील पढ़े-लिखे युवक के तौर पर पर्यटन प्रबंधन में एमबीए करने के बाद करियर के तौर पर अंतरराष्ट्रीय पर्यटन जगत में नई दिल्ली से टूर ऑपरेटिंग बिज़नस से नौकरी की शुरुआत | 2 वर्ष से अधिक का समय अंतरराष्ट्रीय टूर ऑपरेशन के कार्य में दिया तत्पश्चात वर्ष 2009 से नई दिल्ली में ही पर्यटन अकादमिक में गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय संबंधित कॉलेज दिल्ली कॉलेज ऑफ एडवांस स्टडीज में लेक्चरर के पद पर पर्यटन शिक्षा में की शुरुआत और बाद में 2011 से केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के संस्थान भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान में सहायक प्रोफेसर के पद आज तक सेवाएं जारी है | जीवन में अध्ययन -अध्यापन का आनंद और पर्यटन विषयों का – प्रबोधन कर स्नातकोत्तर एवं स्नातक के विद्यार्थियों को पर्यटन सेवा जीवन के लिए तैयार कर, जीवन का आनंद ले रहा हूं | यदा-कदा हिंदी मां की सेवा भी करता रहता हूं |
सृजन का जीवन में महत्व
जीवन में अनेकों चुनौतियां मय्यसर हुई /होती हैं नहीं होती है; लेकिन जीवन संघर्ष में इन सब का सामना लेखनी की मदद से किया जा सकता है | अपने अच्छे और बुरे समय में सृजन का साथ रखें और सृजनात्मकता बुराई को धराशाई करने का काम करेगी | मेरे जीवन में सृजन का महत्व वैसा ही है जैसे जीवन में त्योहारों और उत्सवों का होता है। मैं जी रहा हूं …चुकि मेरी लेखनी जीवित है।
1
शून्य की वापसी
अंक की हैसियत
की कैफ़ियत क्या कहिये
कुछ हिसाब ही नहीं था
एक स्वयं के अहम् में
दर्प का यूँ ही
डंका सा बजा था
तोड़ देता वो करके कोशिश
लेकिन चुप रहा
आखिर शून्य था
सबसे छोटा और कुछ
सहमा सा डरा सा
अंको के अहम् के
गणित में कुछ अनपढ़
सा बना
खड़ा रहा
शून्य का अहम् बस
शून्य था
कुछ बेमोल था
दे रहा था मगर
खामोश दार्शनिक भाव
जिसके बिन मूल्य के
बिक जाने से पहले
के त्याग को समझ
नहीं पाया अंको का परिवार
हुआ पारावार
सबका बेडा पार
अंकों को वामांग कर
शून्य ने भर दिया
उनका भण्डार
मिट गया मिथक
शून्य के “न्यून” होने का
नहीं; कहीं वरन खोने का
यह तो वापसी है शून्य की
एक हरफनमौला की
शून्य की तासीर की
शून्य की ताबीर की
अंको में बिन मोल
मगर अंको के मोल को
मगर बढ़ा पाने की
शून्य की वापसी
2
साथी साथ चलना है
साथी साथ चलना है
मंजिलों पर हक़ तो अपना है
जीत सबका सपना है
रखकर इरादे ऊँचे वादा तो पूरा करना है ||
मुश्किलें तो आती हैं,
मगर वो दूर हो जातीं हैं,
बंदिशों से अपने लिखनी यह पाती है,
जीत की इबारत थोड़ी सी जो बाकी है ||
मन एक कभी हारेगा,
दूजा उसको सराहेगा,
मिलकर मंजिल पर दोस्त उसे पहुंचाएगा,
यह सब दल बल का काम होगा ,
तभी विजय पर हम सबका नाम होगा ||
3
स्वागत है पर्यटन जगत में
हो रहा है मिलन हार से जीत का
खिल रहा है सबका मन सुनके संगीत पर्यटन का
खोल बांहे आवाहन कर रही हैं दिशाएं
गीत क्या राग क्या, क्या ही होते हैं स्वर
निर्झरी सी रही ह्रदय की घुमक्कड़ी
देशाटन ही नही, पर्यटन ही सही
पर्यटन न सही, तीर्थाटन ही सही
तीर्थाटन न सही, मन का आवंटन सही
कोरी प्रकृति की कोरी अट्टालिकाएं बुलाती हमें
हम फिर भी जो न जाएं तो क्या फायदा
वे तो करती हमारा ह्रदय से स्वागतम्
देखो अपना सा देश, देख लो मेरा देश
हॉ चलो- ‘देखो अपना देश’
कह रही हैं दिशाएं स्वागतम्- स्वागतम्
स्वागतम् आगतम्, आगतम् जीवनम्
स्वागतम् पर्यटन की धरा सुन्दरम्
शैल देखो कभी, देख लो नद्य भी
देखो जितना लगे मोहक मन को सभी
स्वागतम् जिन्दगी पर्यटन की धरा
स्वागतम् पर्यटन के लिए जिन्दगी
बन सको तो बनो सांकृत्यायन भी कभी
स्वागत तो करो पर्यटन का भी
जिन्दगी में बनके यात्री कभी-कभी
4
रिश्तों की समझ
संबंधों के अपनेपन का नाम है रिश्ता
पर हर रिश्ते के संबंधों के पीछे होता है एक रिश्ता
राज जहाँ छिपते हो वो कैसा रिश्ता
हर संबंधो में प्रगाढ़तम माँ- बेटे का रिश्ता
कुछ सम्बन्ध जन्मजात मिले कहलाया रिश्ता
डोर संबंधों की तोड़े न टूटे वो है रिश्ता
मगर रिश्तों की भी करनी होती है मरम्मत तब चलता है रिश्ता
कसक दिलो में भाव आँख में पढ़ लेता रिश्ता
तंग दिलों के दिल में क्या बना सकोगे खुद का रिश्ता
खुले दिल और विश्वास की धरा पर सच होता रिश्ता
ओस की कोमल बूंदों जैसा नाजुक होता हर रिश्ता
रक्त, मेद, पय के संबंधो के परे भी बनता है रिश्ता
हाँ समाज यदि नाम न भी दे पर वो है अंतर्मन का रिश्ता
बिछड़ जाने पर किसी सम्बन्ध के भी जीवित रहता है रिश्ता
उमीदों के बागों में खिलकर प्रणय प्रभा से पलता है रिश्ता
जन्मजात या प्रेम के बल से बनता हर रिश्ता
क्षिति से गगन जैसा जो न मिल पाए वो भी तो कुछ गुमनाम सा रिश्ता
पलकों पर किसी और की वेदना को समझ सके वो है रिश्ता
प्रखर प्रेम और विश्वास त्याग से सधता, चलता हर रिश्ता
प्रेम का जिसमे उपभोग नहीं, देह की जिसमे चाह नहीं वो प्रणय का रिश्ता
दंभ स्वयं के आकर मानवता हित ले लेता वो कैसा रिश्ता
5
कुछ पल अपने लिए
स्वयं को समर्पित
ना वक़्त मुझको अपना कभी
न मिले न सही कुछ गिला भी नहीं
मैं समर्पण का समभाव रखता नहीं
थी शिकायत मुझको बस स्वयं से मगर
पा जो न सका समय के कुछ पल अपने लिए !!
धर्म को जानता, कर्म को साधता
या की अपनी कमाई से मैं घर पालता
हो गया बेदखल अपने ही मूल से
आज दर्पण मुझे खुद न पहचानता
वो भी कहता रहा डाल ले, कुछ पल अपने लिए !!
क्यों रहा तू हमेशा जिन्दगी औरों पर वारता
ख्वाहिशें अब नहीं, न ही कोई चाव है
चोट मन पर लगी अब नहीं उसका भाव है
कर्म रत हो रहा ,न कुछ पल अपने लिए ही रहे !!
मेरे वक़्त पर अब नाम औरों के होते गए
पल से कल तक चला ,कल से वर्षों चला
आज वर्षों की बारिश श्वेताम्बरी हो चली
अब रहा न वो देह , न ही नेह भी रहा
थी शिकायत मुझे औरों से मगर
था टालता खुदी के अनमोल कुछ पल अपने लिए !!
अब अचानक बड़ा बेसबर हो रहा
न पल ही रहा, न ही विकल मैं रहा
ना सफल मैं रहा, न विफल मैं रहा
बस जो खोता गया
वो ही था.. बस एक मेरा अपना ..बस अपना
कुछ पल अपने लिए पर,… वो .. कहाँ पा सका !!
अमित तिवारी “शून्य”
ग्वालियर म. प्र.