मेरे मन की बात – डॉ. प्रीति समकित सुराना

         कभी-कभी सोचा हुआ पूरा नहीं हो पाता पर कहते हैं न जो होता है अच्छा होता है।         हुआ यूँ कि हिन्दी दिवस के लिए रचनाएँ आमंत्रित किये 2 दिन ही हुए थे कि मेरी बड़ी सासु मां का देहांत हो गया। कुछ दिन काम में मन ही नहीं लगा। इस बीच रक्षाबंधन कब आया…